स॒त्रा यदीं॑ भार्व॒रस्य॒ वृष्णः॒ सिष॑क्ति॒ शुष्मः॑ स्तुव॒ते भरा॑य। गुहा॒ यदी॑मौशि॒जस्य॒ गोहे॒ प्र यद्धि॒ये प्राय॑से॒ मदा॑य ॥७॥
satrā yad īm bhārvarasya vṛṣṇaḥ siṣakti śuṣmaḥ stuvate bharāya | guhā yad īm auśijasya gohe pra yad dhiye prāyase madāya ||
स॒त्रा। यत्। ई॒म्। भा॒र्व॒रस्य॑। वृष्णः॑। सिस॑क्ति। शुष्मः॑। स्तु॒व॒ते। भराय॑। गुहा॑। यत्। ई॒म्। औ॒शि॒जस्य॑। गोहे॑। प्र। यत्। धि॒ये। प्र। अय॑से। मदा॑य ॥७॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब राजविषयान्तर्गत राजभृत्यों के कर्म को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजविषयान्तर्गतराजभृत्यकर्माह ॥
यद्यः शुष्मः सत्रेम् भार्वरस्य वृष्णः स्तुवते भराय सिषक्ति यद्यो गुहौशिजस्य गोहे सत्यं प्र सिषक्ति यद्योऽयसे मदाय धिये गुहा प्रज्ञानमीं प्र सिषक्ति स एव सर्वं लभते ॥७॥