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कया॒ तच्छृ॑ण्वे॒ शच्या॒ शचि॑ष्ठो॒ यया॑ कृ॒णोति॒ मुहु॒ का चि॑दृ॒ष्वः। पु॒रु दा॒शुषे॒ विच॑यिष्ठो॒ अंहोऽथा॑ दधाति॒ द्रवि॑णं जरि॒त्रे ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kayā tac chṛṇve śacyā śaciṣṭho yayā kṛṇoti muhu kā cid ṛṣvaḥ | puru dāśuṣe vicayiṣṭho aṁho thā dadhāti draviṇaṁ jaritre ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

कया॑। तत्। शृ॒ण्वे॒। शच्या॑। शचि॑ष्ठः। यया॑। कृणोति॑। मुहु॑। का। चि॒त्। ऋ॒ष्वः। पु॒रु। दा॒शुषे॑। विऽच॑यिष्ठः। अंहः॑। अथ॑। द॒धा॒ति॒। द्रवि॑णम्। ज॒रि॒त्रे ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:20» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के उपदेशगुणों को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जैसे (शचिष्ठः) अत्यन्त बुद्धिमान् (विचयिष्ठः) अत्यन्त वियोग करनेवाला (ऋष्वः) बड़ा विद्वान् (अंहः) अपराध को पृथक् करके (अथा) अनन्तर (जरित्रे) स्तुति करने और (दाशुषे) देनेवाले के लिये (पुरु) बहुत (द्रविणम्) धन को (दधाति) धारण करता है और जिन (का) किन्हीं (चित्) भी उत्तम कर्म्मों को (यया) जिस (कया) किसी (शच्या) बुद्धि वा क्रिया से (मुहु) बार-बार (कृणोति) सिद्ध करता है (तत्) उन्हें उससे (शृण्वे) सुनूँ ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों की योग्यता है कि जैसे यथार्थवक्ता जन पापों का त्याग, धर्म्म का आचरण और यथार्थ ज्ञानस्वरूप ज्ञान को धारण करके जगत् के कल्याण के लिये बहुत ज्ञान को फैलाते हैं, वैसे ही आप लोग आचरण करो ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वदुपदेशगुणानाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! यथा शचिष्ठो विचयिष्ठ ऋष्वो विद्वानंहः पृथक्कृत्याऽथा जरित्रे दाशुषे पुरु द्रविणं दधाति यानि का चिदुत्तमानि कर्म्माणि यया कया शच्या मुहु कृणोति तत्तया शृण्वे ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (कया) (तत्) तानि (शृण्वे) शृणुयाम् (शच्या) प्रज्ञया क्रियया वा (शचिष्ठः) अतिशयेन प्राज्ञः (यया) (कृणोति) (मुहु) वारं वारम् (का) कानि (चित्) अपि (ऋष्वः) महान् (पुरु) बहु (दाशुषे) दात्रे (विचयिष्ठः) अतिशयेन वियोजकः (अंहः) अपराधम् (अथा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (दधाति) (द्रविणम्) धनम् (जरित्रे) स्तावकाय ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्याणां योग्यतास्ति यथाऽऽप्ताः पापानि विहाय धर्म्माचरणङ्कृत्वा प्रमात्मकञ्ज्ञानं धृत्वा जगत्कल्याणाय पुष्कलं विज्ञानं प्रसारयन्ति तथैव यूयमाचरत ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे विद्वान लोक पापाचा त्याग, धर्माचे आचरण व यथार्थ ज्ञान धारण करून जगाच्या कल्याणासाठी पुष्कळ विज्ञान प्रसृत करतात तसे तुम्ही वागा. ॥ ९ ॥