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यस्त्वा॑ दो॒षा य उ॒षसि॑ प्र॒शंसा॑त्प्रि॒यं वा॑ त्वा कृ॒णव॑ते ह॒विष्मा॑न्। अश्वो॒ न स्वे दम॒ आ हे॒म्यावा॒न्तमंह॑सः पीपरो दा॒श्वांस॑म् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas tvā doṣā ya uṣasi praśaṁsāt priyaṁ vā tvā kṛṇavate haviṣmān | aśvo na sve dama ā hemyāvān tam aṁhasaḥ pīparo dāśvāṁsam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। त्वा॒। दो॒षा। यः। उ॒षसि॑। प्र॒ऽशंसा॑त्। प्रि॒यम्। वा॒। त्वा॒। कृ॒णव॑ते। ह॒विष्मा॑न्। अश्वः॑। न। स्वे। दमे॑। आ। हे॒म्याऽवा॑न्। तम्। अंह॑सः। पी॒प॒रः॒। दा॒श्वांस॑म्॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:2» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:17» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् पुरुष ! (यः) जो (त्वा) आपकी (दोषा) रात्रि में और (उषसि) दिन में (त्वा) आपकी (आ, प्रशंसात्) सब प्रकार प्रशंसा करे (वा) अथवा (यः) जो (हविष्मान्) उत्तम दान की सामग्री से युक्त (हेम्यावान्) जिसके जल में प्रकट हुई रात्रि विद्यमान (तम्) उस (दाश्वांसम्) देनेवाले आपको (स्वे) अपने (दमे) घर में (अंहसः) अपराध से (अश्वः) घोड़े के (न) सदृश (पीपरः) पाले उस (प्रियम्) प्रिय सुख (कृणवते) करते हुए के लिये आप सुख दीजिये ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जो लोग दिन और रात्रि आप का उत्साह बढ़ावें, उनको आप लोग घास आदि से घोड़ों को जैसे वैसे आनन्द देओ ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे विद्वन् ! यस्त्वा दोषोषसि प्रियं त्वाऽऽप्रशंसाद्वा यो हविष्मान् हेम्यावांस्तं दाश्वांसं त्वा त्वां स्वे दमेऽहंसोऽश्वो न पीपरस्तस्मै प्रियं सुखं कृणवते त्वं सुखं देहि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (त्वा) त्वाम् (दोषा) रात्रौ (यः) (उषसि) दिने (प्रशंसात्) प्रशंसेत् (प्रियम्) (वा) (त्वा) त्वाम् (कृणवते) कुर्वते (हविष्मान्) प्रशस्तदानसामग्रीयुक्तः (अश्वः) तुरङ्गः (न) इव (स्वे) स्वकीये (दमे) गृहे (आ) (हेम्यावान्) हेम्न्युदके भवा रात्रिर्विद्यते यस्य। हेमेत्युदकनामसु पठितम्। (निघं०१.१२) (तम्) (अंहसः) अपराधात् (पीपरः) पालय (दाश्वांसम्) दातारम् ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे मनुष्या ! येऽहर्न्निशं युष्मांस्तूत्साहयेयुस्तान् यूयं घासादिनाऽश्वानिवाऽऽनन्दयत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! जे लोक अहर्निश तुमचा उत्साह वाढवितात त्यांना तुम्ही घोड्यांना जसा गवतामुळे आनंद होतो तसा आनंद द्या ॥ ८ ॥