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मम॑च्च॒न ते॑ मघव॒न्व्यं॑सो निविवि॒ध्वाँ अप॒ हनू॑ ज॒घान॑। अधा॒ निवि॑द्ध॒ उत्त॑रो बभू॒वाञ्छिरो॑ दा॒सस्य॒ सं पि॑णग्व॒धेन॑ ॥९॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mamac cana te maghavan vyaṁso nivividhvām̐ apa hanū jaghāna | adhā nividdha uttaro babhūvāñ chiro dāsasya sam piṇag vadhena ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मम॑त्। च॒न। ते॒। म॒घ॒ऽव॒न्। विऽअं॑सः। नि॒ऽवि॒वि॒ध्वान्। अप॑। हनू॒ इति॑। ज॒घान॑। अध॑। निऽवि॑द्धः। उत्ऽत॑रः। ब॒भू॒वान्। शिरः॑। दा॒सस्य॑। सम्। पि॒ण॒क्। व॒धेन॑ ॥९॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:18» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) बहुत धन से युक्त पुरुष जो (ते) आपके (दासस्य) देने योग्य के (वधेन) ताड़न से (शिरः) शिर को (सम्, पिणक्) अच्छे पीसता है (व्यंसः) खींच लिये गये हैं बल आदि जिसके ऐसा (निविविध्वान्) अत्यन्त शत्रुओं का नाश करनेवाला (हनू) मुख के आस-पास के भागों को (अप) दूर करने में (जघान) नाश करता है (अधा) इसके (ममत्) प्रसन्न होता हुआ (चन) भी (उत्तरः) आगे के समय में होनेवाला (निविद्धः) अत्यन्त वाणों से छेदा गया (बभूवान्) होता है, उसको आप दण्ड दीजिये ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो विरुद्ध कर्म से प्रजाओं में चेष्टा करता है, उस सदा दृढ़ बँधे को शस्त्रों से व्यथित कर सब प्रकार से बाँधो ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे मघवन् ! यस्त दासस्य वधेन शिरः सम्पिणग् व्यंसो निविविध्वान् हनू अप जघानाधा ममच्चनोत्तरो निविद्धो बभूवांस्तं त्वं दण्डय ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ममत्) हर्षन् (चन) अपि (ते) (मघवन्) बहुधनयुक्त (व्यंसः) विप्रकृष्टा अंसा बलादयो यस्य सः (निविविध्वान्) यो नितरां शत्रून् विध्यति सः (अप) दूरीकरणे (हनू) मुखपार्श्वौ (जघान) (अधा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (निविद्धः) नितरां वाणैर्विच्छिन्नः (उत्तरः) उत्तरकालीनः (बभूवान्) भवति (शिरः) उत्तमाङ्गम् (दासस्य) दातुं योग्यस्य (सम्) (पिणक्) पिनष्टि (वधेन) ताडनेन ॥९॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! यो विरुद्धेन कर्मणा प्रजासु विचेष्टते तं सदा निबद्धं शस्त्रैर्व्यथितं कृत्वा सर्वतो निबध्नीहि ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जो प्रजेमध्ये विरोधी कार्य करण्याचा प्रयत्न करतो त्याला सदैव बंधित करून शस्त्रांनी पीडित करून सर्व प्रकारे बंधनात ठेवावे. ॥ ९ ॥