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मम॑च्च॒न त्वा॑ युव॒तिः प॒रास॒ मम॑च्च॒न त्वा॑ कु॒षवा॑ ज॒गार॑। मम॑च्चि॒दापः॒ शिश॑वे ममृड्यु॒र्मम॑च्चि॒दिन्द्रः॒ सह॒सोद॑तिष्ठत् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

mamac cana tvā yuvatiḥ parāsa mamac cana tvā kuṣavā jagāra | mamac cid āpaḥ śiśave mamṛḍyur mamac cid indraḥ sahasod atiṣṭhat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मम॑त्। च॒न। त्वा॒। यु॒व॒तिः। प॒रा॒ऽआस॑। मम॑त्। च॒न। त्वा॒। कु॒षवा॑। ज॒गार॑। मम॑त्। चि॒त्। आपः॑। शिश॑वे। म॒मृड्युः॒। मम॑त्। चि॒त्। इन्द्रः॑। सह॑सा। उत्। अ॒ति॒ष्ठ॒त् ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:18» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:3 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जो (युवतिः) पूर्ण चौबीस वर्षवाली (त्वा) आपको (ममत्) मदयुक्त करती हुई (चन) भी (परास) पराङ्मुख करती है, जो (ममत्) प्रमादयुक्त करती हुई (कुषवा) निकृष्ट प्रेरणावाली (त्वा) आपको (चन) भी (जगार) निगलती है, उसके सङ्ग का त्याग करो और जो (ममत्) मदयुक्त करती हुई (आपः) जलों के सदृश वर्तमान माता से (चित्) वैसे (शिशवे) पुत्र के लिये (ममृड्युः) सुख देती है और जो (ममत्) सुख देता हुआ (चित्) सा (इन्द्रः) सूर्य के सदृश (सहसा) बल से (उत्, अतिष्ठत्) उठता है, उसकी सेवा करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग प्रमत्त स्त्रियों में प्रमाद को नहीं प्राप्त होते, वे बली होते हैं और जो पुत्र के सदृश प्रजाओं का पालन करते, वे उत्तम होते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह ॥

अन्वय:

हे राजन् ! या युवतिस्त्वा ममच्चन परास या ममत् कुषवा त्वा चन जगार तत्सङ्गं त्यज या ममदापश्चिदिव शिशवे ममृड्युर्ये ममच्चिदिन्द्रः सहसा उदतिष्ठत्तं सेवस्व ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ममत्) प्रमादयन्ती (चन) अपि (त्वा) त्वाम् (युवतिः) पूर्णचतुर्विंशतिवार्षिका (परास) पराङ्मुखस्यति (ममत्) (चन) (त्वा) (कुषवा) कुत्सितः सवः प्रेरणा यस्याः सा (जगार) निगिलति (ममत्) (चित्) (आपः) जलवद्वर्त्तमाना मातरः (शिशवे) पुत्राय (ममृड्युः) सुखयन्ति (ममत्) (चित्) (इन्द्रः) सूर्य इव (सहसा) बलेन (उत्) (अतिष्ठत्) उत्तिष्ठति ॥८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये प्रमदासु न प्रमाद्यन्ति ते बलिनो जायन्ते ये पुत्रवत् प्रजाः पालयन्ति त उत्कृष्टा भवन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे लोक प्रमत्त बनून स्त्रियांबाबत अपराध करीत नाहीत ते बलवान असतात व जे पुत्राप्रमाणे प्रजेचे पालन करतात ते उत्कृष्ट असतात. ॥ ८ ॥