मम॑च्च॒न त्वा॑ युव॒तिः प॒रास॒ मम॑च्च॒न त्वा॑ कु॒षवा॑ ज॒गार॑। मम॑च्चि॒दापः॒ शिश॑वे ममृड्यु॒र्मम॑च्चि॒दिन्द्रः॒ सह॒सोद॑तिष्ठत् ॥८॥
mamac cana tvā yuvatiḥ parāsa mamac cana tvā kuṣavā jagāra | mamac cid āpaḥ śiśave mamṛḍyur mamac cid indraḥ sahasod atiṣṭhat ||
मम॑त्। च॒न। त्वा॒। यु॒व॒तिः। प॒रा॒ऽआस॑। मम॑त्। च॒न। त्वा॒। कु॒षवा॑। ज॒गार॑। मम॑त्। चि॒त्। आपः॑। शिश॑वे। म॒मृड्युः॒। मम॑त्। चि॒त्। इन्द्रः॑। सह॑सा। उत्। अ॒ति॒ष्ठ॒त् ॥८॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब राजविषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजविषयमाह ॥
हे राजन् ! या युवतिस्त्वा ममच्चन परास या ममत् कुषवा त्वा चन जगार तत्सङ्गं त्यज या ममदापश्चिदिव शिशवे ममृड्युर्ये ममच्चिदिन्द्रः सहसा उदतिष्ठत्तं सेवस्व ॥८॥