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किमु॑ ष्विदस्मै नि॒विदो॑ भन॒न्तेन्द्र॑स्याव॒द्यं दि॑धिषन्त॒ आपः॑। ममै॒तान्पु॒त्रो म॑ह॒ता व॒धेन॑ वृ॒त्रं ज॑घ॒न्वाँ अ॑सृज॒द्वि सिन्धू॑न् ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

kim u ṣvid asmai nivido bhanantendrasyāvadyaṁ didhiṣanta āpaḥ | mamaitān putro mahatā vadhena vṛtraṁ jaghanvām̐ asṛjad vi sindhūn ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

किम्। ऊ॒म् इति॑। स्वि॒त्। अ॒स्मै॒। नि॒ऽविदः॑। भ॒न॒न्त॒। इन्द्र॑स्य। अ॒व॒द्यम्। दि॒धि॒ष॒न्ते॒। आपः॑। मम॑। ए॒तान्। पु॒त्रः। म॒ह॒ता। व॒धेन॑। वृ॒त्रम्। ज॒घ॒न्वान्। अ॒सृ॒ज॒त्। वि। सिन्धू॑न् ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:18» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मेघ विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (मम) मुझ पुत्र के (इन्द्रस्य) सूर्यसम्बन्ध की (निविदः) अत्यन्त ज्ञान जिनसे वे वाणी (अस्मै) इस मेघ के लिये (किम्) क्या (उ) और (स्वित्) क्यों (भनन्त) शब्द करती हैं (आपः) जल (अवद्यम्) निन्द्य (दिधिषन्ते) शब्द करते हैं, मेरा (पुत्रः) सन्तान (महता) बड़े (वधेन) वध से (एतान्) इनको और (वृत्रम्) मेघ का (जघन्वान्) नाश किया हुआ सूर्य्य (सिन्धून्) नदियों को (वि, असृजत्) उत्पन्न करता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में अदिति, सूर्य्य और मेघ के अलङ्कार से सेना, सभाध्यक्ष और राजा के कृत्य का वर्णन है। जैसे अन्तरिक्ष के पुत्र के समान वर्त्तमान सूर्य्य मेघ का नाश करके नदियों को बहाता है, वैसे ही विद्वान् का उत्तम प्रकार शिक्षित पुत्र सेना का अध्यक्ष शत्रुओं का नाश करके सेनाओं को ऐश्वर्य्य प्राप्त कराता है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मेघविषयमाह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! ममाऽपत्यस्येन्द्रस्य निविदोऽस्मै मेघाय किमु ष्विद्भनन्तापोऽवद्यं दिधिषन्ते मम पुत्रो महता वधेनैतान् वृत्रञ्च जघन्वान्त्सिन्धून् व्यसृजत् ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (किम्) (उ) (स्वित्) प्रश्ने (अस्मै) मेघाय (निविदः) नितरां विदन्ति याभिस्ता वाचः। निविदिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (भनन्त) वदन्ति (इन्द्रस्य) सूर्य्यस्य (अवद्यम्) गर्ह्यम् (दिधिषन्ते) शब्दयन्ति (आपः) (मम) (एतान्) (पुत्रः) (महता) (वधेन) (वृत्रम्) (जघन्वान्) हतवान् (असृजत्) सृजति (वि) (सिन्धून्) नदीः ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्राऽदितिसूर्य्यमेघाऽलङ्कारेण सेनासभाध्यक्षराज्ञां कृत्यं वर्णितमस्ति। यथाऽन्तरिक्षस्य पुत्रवद्वर्त्तमानोऽर्को मेघं हत्वा नदीर्वाहयति तथैव विदुषः सुशिक्षितः पुत्रः सेनाध्यक्षश्शत्रून् हत्वा सेना ऐश्वर्यं प्रापयति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात अदिती, सूर्य मेघाच्या अलंकाराद्वारे सेना, सभाध्यक्ष व राजाच्या कृत्याचे वर्णन आहे, जसे अंतरिक्षात पुत्राप्रमाणे वर्तमान असलेला सूर्य मेघाचा नाश करून नद्यांना प्रवाहित करतो, तसेच विद्वान सुशिक्षित पुत्र सेनेचा अध्यक्ष बनून शत्रूचा नाश करून सेनेला ऐश्वर्य प्राप्त करवून देतो. ॥ ७ ॥