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ए॒ता अ॑र्षन्त्यलला॒भव॑न्तीर्ऋ॒ताव॑रीरिव सं॒क्रोश॑मानाः। ए॒ता वि पृ॑च्छ॒ किमि॒दं भ॑नन्ति॒ कमापो॒ अद्रिं॑ परि॒धिं रु॑जन्ति ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

etā arṣanty alalābhavantīr ṛtāvarīr iva saṁkrośamānāḥ | etā vi pṛccha kim idam bhananti kam āpo adrim paridhiṁ rujanti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒ताः। अ॒र्ष॒न्ति॒। अ॒ल॒ला॒ऽभव॑न्तीः। ऋ॒तव॑रीःऽइव। सम्ऽक्रोश॑मानाः। ए॒ताः। वि। पृ॒च्छ॒। किम्। इ॒दम्। भ॒न॒न्ति॒। कम्। आपः॑। अद्रि॑म्। प॒रि॒ऽधिम्। रु॒ज॒न्ति॒ ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:18» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:26» मन्त्र:1 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मेघ के कृत्य को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जिज्ञासुजन ! जो (एताः) ये नदियाँ (ऋतावरीरिव) प्रातःकालों के सदृश (संक्रोशमानाः) उच्चस्वर को करती हुई (अललाभवन्तीः) अलल अर्राती हुई (अर्षन्ति) जाती हैं सो (एताः) ये (किम्) क्या (इदम्) यह (भनन्ति) शब्द करती हैं, ऐसा (वि, पृच्छ) विशेष करके पूछिये और ये (आपः) जल (कम्) किस (परिधिम्) घेर और (अद्रिम्) मेघ को (रुजन्ति) भञ्जते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । हे मनुष्यो ! यह नदियाँ मेघों की पुत्रियाँ अर्थात् उनसे उत्पन्न हुई तटों को तोड़ती और अव्यक्त शब्दों को करती हुई प्रातःकालों के सदृश जाती हैं, वैसे ही सेना शत्रुओं के सम्मुख प्राप्त होवें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मेघकृत्यमाह ॥

अन्वय:

हे जिज्ञासो ! या एता नद्य ऋतावरीरिव संक्रोशमाना अललाभवन्तीरर्षन्ति ता एता किमिदं भनन्तीति वि पृच्छ। एता आपः कं परिधिमद्रिं रुजन्तीति च ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एताः) (अर्षन्ति) गच्छन्ति (अललाभवन्तीः) अलला अलला इव शब्दयन्तीः (ऋतावरीरिव) उषस इव (संक्रोशमानाः) आक्रोशं कुर्वाणाः (एताः) गच्छन्त्यो नद्यः (वि) (पृच्छ) (किम्) (इदम्) (भनन्ति) शब्दयन्ति (कम्) (आपः) (अद्रिम्) मेघम् (परिधिम्) (रुजन्ति) भञ्जन्ति ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः । हे मनुष्या ! एता नद्यो मेघपुत्र्यास्तटान् भञ्जन्त्य अव्यक्ताञ्छब्दान् कुर्वन्त्य उषा इव गच्छन्ति तथैव सेनाः शत्रूनभिमुखं गच्छन्तु ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे माणसांनो ! या नद्या मेघांच्या कन्या असून तटाचे बंधन तोडतात व अव्यक्त आवाज करत प्रातःकाळाप्रमाणे तीव्र गतीने जातात, तसेच सेनेने शत्रूसमोर जावे. ॥ ६ ॥