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अ॒व॒द्यमि॑व॒ मन्य॑माना॒ गुहा॑क॒रिन्द्रं॑ मा॒ता वी॒र्ये॑णा॒ न्यृ॑ष्टम्। अथोद॑स्थात्स्व॒यमत्कं॒ वसा॑न॒ आ रोद॑सी अपृणा॒ज्जाय॑मानः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

avadyam iva manyamānā guhākar indram mātā vīryeṇā nyṛṣṭam | athod asthāt svayam atkaṁ vasāna ā rodasī apṛṇāj jāyamānaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒व॒द्यम्ऽइ॑व। मन्य॑माना। गुहा॑। अ॒कः॒। इन्द्र॑म्। मा॒ता। वी॒र्ये॑ण। निऽऋ॑ष्टम्। अथ॑। उत्। अ॒स्था॒त्। स्व॒यम्। अत्क॑म्। वसा॑नः। आ। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒पृ॒णा॒त्। जाय॑मानः ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:18» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:25» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मान करनेवाली माता से उत्तम ऐश्वर्यवान् पुरुष के पालनादि विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जैसे (मन्यमाना) आदर की गई (माता) माता (गुहा) बुद्धि में (वीर्येणा) पराक्रम से (न्यृष्टम्) अत्यन्त प्राप्त (इन्द्रम्) राजा को (अवद्यमिव) निन्दनीय के सदृश (अकः) करती है, वैसे ही (जायमानः) उत्पन्न होनेवाला सूर्य (रोदसी) अन्तरिक्ष और पृथ्वी का (आ, अपृणात्) पालन करता है और जैसे (अत्कम्) कूप का (वसानः) आच्छादन करता हुआ जन (स्वयम्) आप ही ऊपर को प्राप्त होवे, वैसे जो (उत, अस्थात्) उठता है वह (अथ) अनन्तर सब जगत् की रक्षा करता है ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो माता सूर्य के सदृश जिन अपने सन्तानों को बोध कराती और दुष्ट आचरणों को दूर करके शिक्षा करती है, तो वे सन्तान उत्तम होते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मानं कुर्वत्या मात्रेन्द्रपालनादिविषयमाह ॥

अन्वय:

यथा मन्यमाना माता गुहा वीर्येणा न्यृष्टमिन्द्रमवद्यमिवाऽकस्तथैव जायमानः सूर्यो रोदसी आपृणाद् यथात्कं वसानो जनस्स्वयमेवोपर्यागच्छेत्तथा य उदस्थात्सोऽथ सर्वं जगद्रक्षति ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अवद्यमिव) निन्दनीयमिव (मन्यमाना) (गुहा) बुद्धौ (अकः) करोति (इन्द्रम्) राजानम् (माता) जननी (वीर्येणा) पराक्रमेण। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (न्यृष्टम्) नितरां प्राप्तम् (अथ) (उत्) (अस्थात्) उत्तिष्ठते (स्वयम्) (अत्कम्) कूपम् (वसानः) आच्छादयन् (आ) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अपृणात्) पृणाति पालयति (जायमानः) उत्पद्यमानः ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यदि माता सूर्यवद्यानि स्वापत्यानि बोधयति दुष्टाचारानपनीय शिक्षते तानि उत्तमानि भवन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोमालंकार आहे. जी माता सूर्याप्रमाणे आपल्या संतानांना बोध करविते व दुष्ट आचरणापासून दूर करून शिक्षण देते तेव्हा ती संतती उत्तम होते. ॥ ५ ॥