उ॒त मा॒ता म॑हि॒षमन्व॑वेनद॒मी त्वा॑ जहति पुत्र दे॒वाः। अथा॑ब्रवीद्वृ॒त्रमिन्द्रो॑ हनि॒ष्यन्त्सखे॑ विष्णो वित॒रं वि क्र॑मस्व ॥११॥
uta mātā mahiṣam anv avenad amī tvā jahati putra devāḥ | athābravīd vṛtram indro haniṣyan sakhe viṣṇo vitaraṁ vi kramasva ||
उ॒त। मा॒ता। म॒हि॒षम्। अनु॑। अ॒वे॒न॒त्। अ॒मी इति॑। त्वा॒। ज॒ह॒ति॒।। पु॒त्र॒। दे॒वाः। अथ॑। अ॒ब्र॒वी॒त्। वृ॒त्रम्। इन्द्रः॑। ह॒नि॒ष्यन्। सखे॑। वि॒ष्णो॒ इति॑। वि॒ऽत॒रम्। वि। क्र॒म॒स्व॒ ॥११॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब सन्तान शिक्षा से विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ सन्तानशिक्षणेन विद्वद्विषयमाह ॥
हे सखे विष्णो पुत्र ! त्वमिन्द्रो वृत्रमिवाऽविद्यां हनिष्यन् वितरं वि क्रमस्वाथ माता त्वा महिषमवेनदेवमुतापि यथा पिताऽब्रवीत्तथा न कुर्य्याश्चेत्तर्ह्यमी देवास्त्वाऽनुजहति ॥११॥