अ॒यं पन्था॒ अनु॑वित्तः पुरा॒णो यतो॑ दे॒वा उ॒दजा॑यन्त॒ विश्वे॑। अत॑श्चि॒दा ज॑निषीष्ट॒ प्रवृ॑द्धो॒ मा मा॒तर॑ममु॒या पत्त॑वे कः ॥१॥
ayam panthā anuvittaḥ purāṇo yato devā udajāyanta viśve | ataś cid ā janiṣīṣṭa pravṛddho mā mātaram amuyā pattave kaḥ ||
अ॒यम्। पन्थाः॑। अनु॑ऽवित्तः। पु॒रा॒णः। यतः॑। दे॒वाः। उ॒त्ऽअजा॑यन्त। विश्वे॑। अतः॑। चि॒त्। आ। ज॒नि॒षी॒ष्ट॒। प्रऽवृ॑द्धः। मा। मा॒तर॑म्। अ॒मु॒या। पत्त॑वे। क॒रिति॑ कः ॥१॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब तेरह ऋचावाले अठारहवें सूक्त का प्रारम्भ है, उसके प्रथम मन्त्र में उत्तम ऐश्वर्यवान् मनुष्य के लिये अच्छे मार्ग का उपदेश करते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथेन्द्राय मनुष्याय सन्मार्गोपदेशमाह ॥
हे मनुष्या ! यतो विश्वे देवा उदजायन्त सोऽयमनुवित्तः पुराणः पन्था अस्ति। यतोऽयं संसारः प्रवृद्धो जनिषीष्टाऽतश्चित्त्वममुया मातरं पत्तवे माऽकः ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात इंद्र, मेघ, राजा व विद्वान यांच्या कार्याचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.