आ॒रे अ॒स्मदम॑तिमा॒रे अंह॑ आ॒रे विश्वां॑ दुर्म॒तिं यन्नि॒पासि॑। दो॒षा शि॒वः स॑हसः सूनो अग्ने॒ यं दे॒व आ चि॒त्सच॑से स्व॒स्ति ॥६॥
āre asmad amatim āre aṁha āre viśvāṁ durmatiṁ yan nipāsi | doṣā śivaḥ sahasaḥ sūno agne yaṁ deva ā cit sacase svasti ||
आ॒रे। अ॒स्मत्। अम॑तिम्। आ॒रे। अंहः॑। आ॒रे। विश्वा॑म्। दुः॒ऽम॒तिम्। यत्। नि॒ऽपासि॑। दो॒षा। शि॒वः। स॒ह॒सः॒। सू॒नो॒ इति॑। अ॒ग्ने। यम्। दे॒वः। आ। चि॒त्। सच॑से। स्व॒स्ति ॥६॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
हे सहसः सूनोऽग्ने ! यत्त्वं देव इवाऽस्मदारे अमतिमारे अंह आरे विश्वां दुर्मतिं निक्षिप्य यं निपासि तं शिवः सन् दोषा दिवसे चित्स्वस्ति आ सचसे तस्मादस्माभिः पूज्योऽसि ॥६॥