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शि॒वा नः॑ स॒ख्या सन्तु॑ भ्रा॒त्राग्ने॑ दे॒वेषु॑ यु॒ष्मे। सा नो॒ नाभिः॒ सद॑ने॒ सस्मि॒न्नूध॑न् ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śivā naḥ sakhyā santu bhrātrāgne deveṣu yuṣme | sā no nābhiḥ sadane sasminn ūdhan ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शि॒वा। नः॒। स॒ख्या। सन्तु॑। भ्रा॒त्रा। अग्ने॑। दे॒वेषु॑। यु॒ष्मे इति॑। सा। नः॒। नाभिः॑। सद॑ने। सस्मि॑न्। ऊध॑न्॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:10» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:5» वर्ग:10» मन्त्र:8 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश पवित्र आचरणयुक्त जो आपके (नाभिः) मध्य अङ्ग के सदृश (शिवा) मङ्गलकारिणी नीति (सस्मिन्) समस्त (ऊधन्) श्रेष्ठ धनाढ्य में और (सदने) विराजें जिसमें उस राज्य में वर्त्तमान है (सा) वह (नः) हम लोगों के (देवेषु) विद्वानों वा उत्तम गुणों में (युष्मे) आप लोगों को प्रवृत्त करे। जो लोग (सख्या) मित्र और (भ्रात्रा) बन्धु के सदृश वर्त्तमान पुरुष के साथ वर्त्तमानों के तुल्य (नः) हम लोगों की रक्षा करनेवाले (सन्तु) हों, उनमें आप विश्वास करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो राजपुरुष परस्पर मित्रता करके प्रजाओं में पिता के सदृश वर्त्तमान हैं, उन लोगों के साथ जो राजनीति का प्रचार करता है, वही सर्वदा राज्य भोगने के योग्य है ॥८॥ इस सूक्त में अग्नि, राजा, मन्त्री और प्रजा के कृत्य वर्णन करने से इस सूक्त के अर्थ की इस से पूर्व सूक्त के अर्थ के साथ सङ्गति जाननी चाहिये ॥८॥ यह चतुर्थ मण्डल में दशवाँ सूक्त प्रथम अनुवाक तृतीय अष्टक के पाँचवें अध्याय में दशवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! या ते नाभिरिव शिवा नीतिः सस्मिन्नूधन् सदने वर्त्तते सा नः देवेषु युष्मे प्रवर्त्तयतु। ये सख्या भ्रात्रा सह वर्त्तमाना इव नो रक्षकाः सन्तु तेषु त्वं विश्वसिहि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शिवा) मङ्गलकारिणी (नः) अस्माकम् (सख्या) मित्रेण (सन्तु) (भ्रात्रा) बन्धुनेव वर्त्तमानेन (अग्ने) पावकवत्पवित्राचरण (देवेषु) विद्वत्सु दिव्यगुणेषु वा (युष्मे) युष्मान् (सा) (नः) अस्माकम् (नाभिः) मध्याङ्गम् (सदने) सीदन्ति यस्मिँस्तस्मिन् राज्ये (सस्मिन्) सर्वस्मिन्। अत्र छान्दसो वर्णलोपो वेति वलोपः (ऊधन्) आढ्ये धनाढ्ये ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये राजपुरुषा परस्मिन् मैत्रीं कृत्वा प्रजासु पितृवद्वर्त्तन्ते तैः सह यो राजनीतिं प्रचारयति स एव सर्वदा राज्यं भोक्तुमर्हतीति ॥८॥ अत्राऽग्निराजाऽमात्यप्रजाकृत्यवर्णनादेतदर्थस्य पूर्वसूक्तार्थेन सह सङ्गतिर्वेद्या ॥८॥ इति चतुर्थमण्डले दशमं सूक्तं प्रथमोऽनुवाकस्तृतीयेऽष्टके पञ्चमेऽध्याये दशमो वर्गश्च समाप्तः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे राजपुरुष परस्पर मैत्री करून प्रजेमध्ये पित्याप्रमाणे असतात, त्यांच्याबरोबर जो राजनीतीचा प्रचार करतो, तोच सदैव राज्य भोगण्यायोग्य आहे. ॥ ८ ॥