स चे॑तय॒न्मनु॑षो य॒ज्ञब॑न्धुः॒ प्र तं म॒ह्या र॑श॒नया॑ नयन्ति। स क्षे॑त्यस्य॒ दुर्या॑सु॒ साध॑न्दे॒वो मर्त॑स्य सधनि॒त्वमा॑प ॥९॥
sa cetayan manuṣo yajñabandhuḥ pra tam mahyā raśanayā nayanti | sa kṣety asya duryāsu sādhan devo martasya sadhanitvam āpa ||
सः। चे॒त॒य॒त्। मनु॑षः। य॒ज्ञऽब॑न्धुः। प्र। तम्। म॒ह्या। र॒श॒नया॑। न॒य॒न्ति॒। सः। क्षे॒ति॒। अ॒स्य॒। दुर्या॑सु। साध॑न्। दे॒वः। मर्त॑स्य। स॒ध॒नि॒ऽत्वम्। आ॒प॒॥९॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
यदि स यज्ञबन्धू राजा मनुषश्चेतयत्तं ये सभासदो मह्या रशनयाऽश्वा इव नीत्या प्र नयन्ति सोऽस्य राज्यस्य दुर्यासु न्यायगृहेषु राजव्यवहारं साधन् क्षेति स देवो मर्त्तस्य सधनित्वमाप ॥९॥