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तद्भ॒द्रं तव॑ दं॒सना॒ पाका॑य चिच्छदयति। त्वां यद॑ग्ने प॒शवः॑ स॒मास॑ते॒ समि॑द्धमपिशर्व॒रे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tad bhadraṁ tava daṁsanā pākāya cic chadayati | tvāṁ yad agne paśavaḥ samāsate samiddham apiśarvare ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। भ॒द्रम्। तव॑। दं॒सना॑। पाका॑य। चि॒त्। छ॒द॒य॒ति॒। त्वाम्। यत्। अ॒ग्ने॒। प॒शवः॑। स॒म्ऽआस॑ते। सम्ऽइ॑द्धम्। अ॒पि॒ऽश॒र्व॒रे॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:9» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य कैसे सब भय से रहित होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य तेजस्वि ! (यत्) जो मनुष्य (अपिशर्वरे) निश्चित अन्धकाररूप रात्रि में भी (समिद्धम्) प्रज्वलित अग्नि के निकट जैसे (पशवः) गौ आदि पशु शीतनिवारणार्थ वैसे (त्वाम्) आपके निकट (समासते) बैठते हैं उनके (पाकाय) परिपक्व दृढ़ होने के लिये अग्नि के (चित्) तुल्य (तत्) उस (भद्रम्) कल्याणकारक बुद्धि से उत्पन्न ज्ञान को (तव) आपका (दंसना) दर्शन शास्त्र (छदयति) बढ़ाता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे मनुष्यो ! जैसे वन में अग्नि के चारों ओर स्थित हुए पशु सिंह आदि से रक्षित होते हैं, वैसे ही विद्वानों के ज्ञान का आश्रय मनुष्यों की सब ओर के भय से रक्षा करता है ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः कथं सर्वभयाद्रहिता भवन्तीत्याह।

अन्वय:

हे अग्ने ! यद्ये मनुष्या अपिशर्वरे समिद्धमग्निं पशवइव त्वां समासते तेषां पाकायाग्निश्चिदिव तद्भद्रं तव दंसना छदयति ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) प्रज्ञाजन्यं ज्ञानम् (भद्रम्) भन्दनीयम् कल्याणकारम् (तव) (दंसना) दंसनं दर्शनम्। अत्र विभक्तेराकारादेशः। (पाकाय) परिपक्वत्वाय (चित्) इव (छदयति) सत्करोति। छदयतीत्यर्चतिकर्मा। निघं० ३।१४। (त्वाम्) (यत्) यतः (अग्ने) अग्निरिव प्रकाशात्मन् (पशवः) गवादयः (समासते) सम्यगुपविशन्ति (समिद्धम्) प्रदीप्तम् (अपिशर्वरे) निश्चिते रात्रावन्धकारे ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे मनुष्या यथाऽरण्येऽग्नेरभितः स्थिताः पशवः सिंहादिभ्यो रक्षिता भवन्ति तथैव विद्वज्ज्ञानाश्रयो मनुष्यान् सर्वतो भयात् रक्षति ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे माणसांनो! जसे वनात अग्नीच्या चारी बाजूंनी स्थित असलेले पशु सिंह इत्यादीपासून रक्षित असतात, तसेच विद्वानाच्या ज्ञानाचा आश्रय माणसांना सर्व प्रकारे भयापासून रक्षण करतो. ॥ ७ ॥