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तं त्वा॒ मर्ता॑ अगृभ्णत दे॒वेभ्यो॑ हव्यवाहन। विश्वा॒न्यद्य॒ज्ञाँ अ॑भि॒पासि॑ मानुष॒ तव॒ क्रत्वा॑ यविष्ठ्य॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

taṁ tvā martā agṛbhṇata devebhyo havyavāhana | viśvān yad yajñām̐ abhipāsi mānuṣa tava kratvā yaviṣṭhya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। त्वा॒। मर्ताः॑। अ॒गृ॒भ्ण॒त॒। दे॒वेभ्यः॑। ह॒व्य॒ऽवा॒ह॒न॒। विश्वा॑न्। यत्। य॒ज्ञान्। अ॒भि॒ऽपासि॑। मा॒नु॒ष॒। तव॑। क्रत्वा॑। य॒वि॒ष्ठ्य॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:9» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:6» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उपदेशक विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मानुष) मननशील (हव्यवाहन) ग्रहण करने योग्य शास्त्रीय युक्ति-युक्त वचनों को प्राप्त करानेहारे (यविष्ठ्य) अत्यन्त ब्रह्मचर्य और विद्या के अभ्यास से युवावस्था को प्राप्त उपदेशक विद्वन् ! (यत्) जो आप (विश्वान्) समस्त (यज्ञान्) विद्यादि के प्रापक व्यवहारों की (अभि, पासि) सब ओर से रक्षा करते हैं उन (तव) आपकी (क्रत्वा) बुद्धि से (मर्त्ताः) मरण धर्मवाले मनुष्य (देवेभ्यः) विद्वानों के लिये (तम्) उन (त्वा) आपको (अगृभ्णत) ग्रहण करें ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसके उपदेश से बुद्धि को प्राप्त होकर समग्र सुखों को आप लोग प्राप्त होवें, उसका सब ओर से सत्कार करो ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरुपदेशकविषयमाह।

अन्वय:

हे मानुष हव्यवाहन यविष्ठ्य विद्वन् यद्विश्वान् यज्ञानभिपासि तस्य तव क्रत्वा मर्त्ता देवेभ्यस्तं त्वाऽगृभ्णत ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) (त्वा) (मर्त्ताः) मरणधर्माणो मनुष्याः (अगृभ्णत) गृह्णन्तु (देवेभ्यः) विद्वद्भ्यः (हव्यवाहन) यो हव्यानि ग्रहीतव्यानि प्रापयति तत्सम्बुद्धौ (विश्वान्) अखिलान् (यत्) यः (यज्ञान्) विद्यादिप्रापकान् व्यवहारान् (अभि पासि) सर्वतो रक्षसि (मानुष) मननशील (तव) (क्रत्वा) प्रज्ञया (यविष्ठ्य) अतिशयेन ब्रह्मचर्य्यविद्याभ्यां प्राप्तयौवन ॥६॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यस्योपदेशेन प्रज्ञां प्राप्य समग्राणि सुखानि भवन्तो लभेरन् तं सर्वतः सत्कुरुत ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ- हे माणसांनो! ज्याच्या उपदेशामुळे बुद्धी प्राप्त करून संपूर्ण सुख तुम्ही प्राप्त करता त्याचा सर्व प्रकारे सत्कार करा. ॥ ६ ॥