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हं॒साइ॑व श्रेणि॒शो यता॑नाः शु॒क्रा वसा॑नाः॒ स्वर॑वो न॒ आगुः॑। उ॒न्नी॒यमा॑नाः क॒विभिः॑ पु॒रस्ता॑द्दे॒वा दे॒वाना॒मपि॑ यन्ति॒ पाथः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

haṁsā iva śreṇiśo yatānāḥ śukrā vasānāḥ svaravo na āguḥ | unnīyamānāḥ kavibhiḥ purastād devā devānām api yanti pāthaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हं॒साःऽइ॑व। श्रे॒णि॒शः। यता॑नाः। शु॒क्राः। वसा॑नाः। स्वर॑वः। नः॒। आ। अ॒गुः॒। उ॒त्ऽनी॒यमा॑नाः। क॒विऽभिः॑। पु॒रस्ता॑त्। दे॒वाः। दे॒वाना॑म्। अपि॑। य॒न्ति॒। पाथः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:8» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:4» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन पूर्ण सुख को प्राप्त होते हैं, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (देवाः) उत्तम गुण-कर्म-स्वभाववाले पण्डित लोग (श्रेणिशः) पंक्ति बाँधे (यतानाः) यत्न करते और (शुक्राः) जलों को (वसानाः) आच्छादन करते हुए (स्वरवः) सुन्दर स्वरों का सेवन करनेहारे (हंसाइव) हंसों के तुल्य दर्शनीय (नः) हमको (उन्नीयमानाः) उत्तम गुणों को प्राप्त करते हुए (पुरस्तात्) पहिले से (कविभिः) बुद्धिमानों के साथ वर्त्तमान (देवानाम्) विद्वानों के (पाथः) मार्ग को (अपि, यन्ति) चलते हैं वे भी हमको (आ, अगुः) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं ॥९॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो हंसों के तुल्य मिल के प्रयत्न से सबकी उन्नति कर अपने आप उन्नति को प्राप्त हुए आप्त सत्यवादियों के मार्ग में चल के पराक्रम बढ़ाते हैं, वे ही पूर्ण सुख को भोगते हैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः के पूर्णं सुखमाप्नुवन्तीत्याह।

अन्वय:

ये देवाः श्रेणिशो यतानाः शुक्रा वसानाः स्वरवो हंसाइव न उन्नीयमानाः पुरस्तात्कविभिः सह वर्त्तमानानां देवानां पाथोऽपि यन्ति तेऽप्यस्मानागुः ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (हंसाइव) यथा पक्षिविशेषाः (श्रेणिशः) कृतश्रेणयो विहितपङ्क्तयः (यतानाः) प्रयतमानाः (शुक्रा) शुक्राण्युदकानि (वसानाः) आच्छादयन्तः (स्वरवः) सुस्वरान् सेवमानाः (नः) अस्मान् (आ) समन्तात् (अगुः) प्राप्नुवन्ति (उन्नीयमानाः) उत्कृष्टान् गुणान् प्रापयन्तः (कविभिः) मेधाविभिः (पुरस्तात्) प्रथमतः (देवाः) दिव्यगुणकर्मस्वभावा विपश्चितः (देवानाम्) विदुषाम् (अपि) (यन्ति) गच्छन्ति (पाथः) मार्गम् ॥९॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये हंसाइव संहता भूत्वा प्रयत्नेन सर्वानुन्नीय स्वयमुन्नताः सन्त आप्तमार्गं गत्वा वीर्य्यं वर्धयन्ति त एव पुष्कलं सुखमश्नुवते ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे हंसाप्रमाणे एकत्रितपणे प्रयत्नपूर्वक सर्वांची उन्नती करतात व स्वतः उन्नती करून घेऊन विद्वान सत्यवादी लोकांच्या मार्गाने जातात ते पराक्रम वाढवून पूर्ण सुख भोगतात. ॥ ९ ॥