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अ॒स्माक॒मायु॑र्व॒र्धय॑न्न॒भिमा॑तीः॒ सह॑मानः। सोमः॑ स॒धस्थ॒मास॑दत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asmākam āyur vardhayann abhimātīḥ sahamānaḥ | somaḥ sadhastham āsadat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्माक॑म्। आयुः॑। व॒र्धय॑न्। अ॒भिऽमा॑तीः। सह॑मानः। सोमः॑। स॒धऽस्थ॑म्। आ। अ॒स॒द॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:62» मन्त्र:15 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:11» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:15


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब इस अगले मन्त्र में मित्रता के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (सोमः) सुन्दर पथ्य और योग्य व्यवहार में प्रेरणा करता हुआ (अभिमातीः) शत्रुओं के सदृश रोगों को (सहमानः) सहन करता हुआ सा (अस्माकम्) हम लोगों के (आयुः) जीवन को (वर्धयन्) बढ़ाता हुआ (सधस्थम्) साथ के स्थान को (आ, असदत्) स्थित हो, वह हम लोगों का मित्र और हम लोग उसके मित्र होवैं ॥१५॥
भावार्थभाषाः - जो धार्मिक, शूरवीर पुरुष शत्रुओं का नाश और मित्रों की रक्षा करके सब सज्जनों की जीवन और विजय से वृद्धि करते हैं, उनके साथ सदैव मैत्री की सब लोगों को रक्षा करनी चाहिये ॥१५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

मित्रताविषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यः सोमोऽभिमातीः सहमान इवाऽस्माकमायुर्वर्धयन्सधस्थमासदत्सोऽस्माकं सखा वयं च तस्य सखायः स्याम ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्माकम्) (आयुः) जीवनम् (वर्धयन्) उन्नयन् (अभिमातीः) शत्रूनिव रोगान् (सहमानः) (सोमः) सुपथ्ये युक्ते व्यवहारे प्रेरयन् (सधस्थम्) सहस्थानम् (आ) (असदत्) आसीदतु ॥१५॥
भावार्थभाषाः - ये धार्मिकाः शूरवीराश्शत्रून् विनाश्य सखीन् रक्षित्वा सर्वान्त्सज्जनानायुर्विजयाभ्यां वर्धयन्ति तैः सह सदैव मैत्री सर्वै रक्षणीया ॥१५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे धार्मिक शूरवीर पुरुष शत्रूंचा नाश व मित्रांचे रक्षण करून सर्व सज्जनांचे जीवनवर्धन करतात व विजय प्राप्त करतात त्यांच्या बरोबर सदैव मैत्री करून सर्व लोकांचे रक्षण केले पाहिजे. ॥ १५ ॥