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अव॒ स्यूमे॑व चिन्व॒ती म॒घोन्यु॒षा या॑ति॒ स्वस॑रस्य॒ पत्नी॑। स्व१॒॑र्जन॑न्ती सु॒भगा॑ सु॒दंसा॒ आन्ता॑द्दि॒वः प॑प्रथ॒ आ पृ॑थि॒व्याः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ava syūmeva cinvatī maghony uṣā yāti svasarasya patnī | svar janantī subhagā sudaṁsā āntād divaḥ papratha ā pṛthivyāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अव॑। स्यूम॑ऽइव। चि॒न्व॒ती। म॒घोनी॑। उ॒षा। या॑ति॒। स्वस॑रस्य। पत्नी॑। स्वः॑। जन॑न्ती। सु॒ऽभगा॑। सु॒ऽदंसाः॑। आ। अन्ता॑त्। दि॒वः। प॒प्र॒थे॒। आ। पृ॒थि॒व्याः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:61» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रियो ! जो (स्यूमेव) डोरों के सदृश व्याप्त (चिन्वती) बटोरती हुई (मघोनी) अत्यन्त धन से युक्त (स्वसरस्य) दिन की (पत्नी) स्त्री के सदृश वर्त्तमान (स्वः, जनन्ती) सूर्य्य वा सुख को उत्पन्न करती हुई (सुभगा) सौभाग्य की करनेवाली (सुदंसाः) उत्तमकर्म जिसमें विद्यमान ऐसी (उषाः) प्रातःकाल की वेला (आ, अन्तात्) सब प्रकार समीप से (दिवः) प्रकाशमान सूर्य्य और (आ) सब प्रकार समीप (पृथिव्याः) पृथिवी के योग से (पप्रथे) प्रख्यात होती है (अव, याति) और प्राप्त होती है, वैसे ही आप लोग भी वर्त्ताव करो ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। हे स्त्रियो ! जैसे दिन का सम्बन्धी प्रातःकाल है, वैसे ही छाया के सदृश अपने-अपने पति के साथ अनुकूल होकर वर्त्ताव करो और जैसे यह प्रकाश पृथिवी के योग से होता है, वैसे पति और पत्नी के सम्बन्ध से सन्तान होते हैं ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे स्त्रियो या स्यूमेव चिन्वती मघोनि स्वसरस्य पत्नीव स्वर्जनन्ती सुभगा सुदंसा उषा आ, अन्ताद्दिव आ, अन्तात्पृथिव्या पप्रथेऽवयाति प्राप्नोति तथैव यूयं वर्त्तध्वम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अव) (स्यूमेव) तन्तुवद्व्याप्ता (चिन्वती) चयनं कुर्वती (मघोनी) परमधनयुक्ता (उषाः) प्रभातवेला (याति) गच्छति (स्वसरस्य) दिनस्य (पत्नी) पत्नीवद्वर्त्तमाना (स्वः) सूर्य्यं सुखं वा (जनन्ती) जनयन्ती (सुभगा) सौभाग्यकारिणी (सुदंसाः) शोभनानि दंसांसि यस्यां सा (आ) (अन्तात्) समीपात् (दिवः) प्रकाशमानात्सूर्य्यात् (पप्रथे) प्रथते (आ) (पृथिव्याः) ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। हे स्त्रियो यथा दिनस्य सम्बन्धिन्युषा अस्ति तथैव छायावत्स्वस्वपत्या सहाऽनुकूलाः सत्यो वर्त्तन्ताम्। यथायं प्रकाशः पृथिव्या योगेन जायते तथा पतिपत्निसम्बन्धादपत्यानि जायन्ते ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. हे स्त्रियांनो! जसा दिवसाचा संबंध उषेशी असतो तसेच आपापल्या पतीबरोबर छायेप्रमाणे अनुकूल होऊन वर्तन करा व जसा हा प्रकाश पृथ्वीच्या योगाने उत्पन्न होतो तसे पती पत्नीच्या संबंधाने संताने उत्पन्न होतात. ॥ ४ ॥