वांछित मन्त्र चुनें

इ॒हेह॑ वो॒ मन॑सा ब॒न्धुता॑ नर उ॒शिजो॑ जग्मुर॒भि तानि॒ वेद॑सा। याभि॑र्मा॒याभिः॒ प्रति॑जूतिवर्पसः॒ सौध॑न्वना य॒ज्ञियं॑ भा॒गमा॑न॒श॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

iheha vo manasā bandhutā nara uśijo jagmur abhi tāni vedasā | yābhir māyābhiḥ pratijūtivarpasaḥ saudhanvanā yajñiyam bhāgam ānaśa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒हऽइ॑ह। वः॒। मन॑सा। ब॒न्धुता॑। न॒रः॒। उ॒शिजः॑। ज॒ग्मुः॒। अ॒भि। तानि॑। वेद॑सा। याभिः॑। मा॒याभिः। प्रति॑जूतिऽवर्पसः। सौध॑न्वनाः। य॒ज्ञिय॑म्। भ॒गम्। आ॒न॒श॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:60» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:7» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब सात ऋचावाले साठवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजविषय का उपदेश करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (नरः) नायक लोगो ! जो (उशिजः) कामना करते हुए (मनसा) चित्त से (इहेह) इस-इस व्यवहार में (वः) आप लोगों का जो (बन्धुता) बन्धुपन उससे तानि उन मित्रपने से युक्त कामों को (अभि, जग्मुः) प्राप्त होते हैं और (याभिः) जिन (मायाभिः) बुद्धियों से (प्रतिजूतिवर्प्पसः) प्रतीत हुआ वेगयुक्त रूप जिनका वे (वेदसा) धन से (सौधन्वनाः) उत्तम अन्तरिक्ष जिसका उसके पुत्र होते हुए (यज्ञियम्) यज्ञ के योग्य (भागम्) अंश को (आनश) व्याप्त होते और भाग्यशाली होते हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य इस संसार में सबके साथ भाईपन करके बुद्धि और धन से सुख बढ़ाते, वे पूर्ण मनोरथवाले होते हैं ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह।

अन्वय:

हे नरो या उशिजो मनसेहेह वो या बन्धुता तया तान्यभिजग्मुर्याभिर्मायाभिः प्रतिजूतिवर्पसो वेदसा सौधन्वनाः सन्तो यज्ञियं भागमानश ते भाग्यशालिनो भवन्ति ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इहेह) अस्मिन्नस्मिन् व्यवहारे (वः) युष्माकम् (मनसा) चित्तेन (बन्धुता) बन्धूनां भावः (नरः) नायकाः (उशिजः) कामयमानाः (जग्मुः) (अभि) (तानि) मित्रत्वयुक्तानि कर्माणि (वेदसा) वित्तेन (याभिः) (मायाभिः) प्रज्ञाभिः (प्रतिजूतिवर्पसः) प्रतीतं जूतिर्वेगवद्वर्पो रूपं येषान्ते (सौधन्वनाः) शोभनं धन्वमन्तरिक्षं यस्य तदपत्यानि तस्य पुत्राः (यज्ञियम्) यज्ञाऽर्हम् (भागम्) (आनश) आनशिरे व्याप्नुवन्ति। अत्र व्यत्ययेन परस्मैपदं पुरुषव्यत्ययश्च ॥१॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या इह जगति सर्वैस्सह भ्रातृत्वं कृत्वा बुद्ध्या धनेन च सुखं वर्द्धयन्ति तेऽलंकामा जायन्ते ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा, मंत्री व प्रजा यांच्या कृत्याचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जी माणसे या जगात सर्वांबरोबर बंधुत्वाची भावना बाळगून बुद्धी व धन याद्वारे सुख वाढवितात, त्यांचे मनोरथ पूर्ण होतात. ॥ १ ॥