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वी॒रस्य॒ नु स्वश्व्यं॑ जनासः॒ प्र नु वो॑चाम वि॒दुर॑स्य दे॒वाः। षो॒ळ्हा यु॒क्ताः पञ्च॑प॒ञ्चा व॑हन्ति म॒हद्दे॒वाना॑मसुर॒त्वमेक॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vīrasya nu svaśvyaṁ janāsaḥ pra nu vocāma vidur asya devāḥ | ṣoḻhā yuktāḥ pañca-pañcā vahanti mahad devānām asuratvam ekam ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वी॒रस्य॑। नु। सु॒ऽअश्व्य॑म्। ज॒ना॒सः॒। प्र। नु। वो॒चा॒म॒। वि॒दुः। अ॒स्य॒। दे॒वाः। षो॒ळ्हा। यु॒क्ताः। पञ्च॑ऽपञ्च। आ। व॒ह॒न्ति॒। म॒हत्। दे॒वाना॑म्। अ॒सु॒र॒ऽत्वम्। एक॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:55» मन्त्र:18 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:31» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:18


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर के गुणों का वर्णन अगले मन्त्र में करते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जनासः) विद्याओं में प्रकट हुए मनुष्यो ! हम (अस्य) इस (वीरस्य) शौर्य्य आदि गुणों को प्राप्त हुए शूर को (स्वश्व्यम्) अतिउत्तम अश्वविषयक अच्छे वचन का (नु) शीघ्र (प्र, वोचाम) उपदेश देवैं जो (युक्ताः) संयुक्त हुए (देवाः) विद्वान् जन (देवानाम्) विद्वानों में (महत्) बड़े (एकम्) एक (असुरत्वम्) दोषों के दूर करने को (विदुः) जानते और जो (षोढा) छः प्रकार की संयुक्त इन्द्रियाँ और (पञ्चपञ्च) पाँच-पाँच प्राण जिस विषय को (आ, वहन्ति) प्राप्त होते हैं उसको जानते हैं, उनके प्रति हम लोग इस ब्रह्म का (नु) शीघ्र उपदेश देवें ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जिसकी प्राप्ति में पाँच प्राण निमित्त और जिसको सब योगी लोग समाधि से जानते हैं, उसीकी उपासना भृत्यों के वीरपन को उत्पन्न करनेवाली है, ऐसा हम लोग उपदेश देवें ॥१८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरगुणानाह।

अन्वय:

हे जनासो वयमस्य वीरस्य स्वश्व्यं नु प्रवोचाम ये युक्ताः देवा देवानां महदेकमसुरत्वं विदुर्ये षोढा युक्ताः पञ्चपञ्च यदा वहन्ति तद्विदुस्तान् प्रति वयमेतद्ब्रह्म नु वोचाम ॥१८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वीरस्य) प्राप्तशौर्य्यादिगुणस्य (नु) सद्यः (स्वश्व्यम्) शोभनेष्वश्वेषु साधु वचः (जनासः) विद्यासु प्रादुर्भूताः (प्र) (नु) (वोचाम) उपदिशाम (विदुः) जानन्ति (अस्य) (देवाः) विद्वांसः (षोढा) षट् प्रकाराः (युक्ताः) (पञ्चपञ्च) (आ) (वहन्ति) प्राप्नुवन्ति (महत्) (देवानाम्) (असुरत्वम्) (एकम्) ॥१८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या यस्य प्राप्तौ पञ्च प्राणा निमित्तं यं सर्वे योगिनः समाधिना जानन्ति तस्यैवोपासनं भृत्यानां वीरत्वजनकमस्तीति वयमुपदिशेम ॥१८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो! ज्याची प्राप्ती करण्यासाठी पाच प्राण निमित्त असतात व ज्याला सर्व योगी लोक समाधीद्वारे जाणतात. त्याचीच उपासना सेवकांमध्ये शूरत्व उत्पन्न करणारी असते, असा उपदेश आम्ही केला पाहिजे. ॥ १८ ॥