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सु॒कृत्सु॑पा॒णिः स्ववाँ॑ ऋ॒तावा॑ दे॒वस्त्वष्टाव॑से॒ तानि॑ नो धात्। पू॒ष॒ण्वन्त॑ ऋभवो मादयध्वमू॒र्ध्वग्रा॑वाणो अध्व॒रम॑तष्ट॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sukṛt supāṇiḥ svavām̐ ṛtāvā devas tvaṣṭāvase tāni no dhāt | pūṣaṇvanta ṛbhavo mādayadhvam ūrdhvagrāvāṇo adhvaram ataṣṭa ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सु॒ऽकृत्। सु॒ऽपा॒णिः। स्वऽवा॑न्। ऋ॒तऽवा॑। दे॒वः। त्वष्टा॑। अव॑से। तानि॑। नः॒। धा॒त्। पू॒ष॒ण्ऽवन्तः॑। ऋ॒भ॒वः॒। मा॒द॒य॒ध्व॒म्। ऊ॒र्ध्वऽग्रा॑वाणः। अ॒ध्व॒रम्। अ॒त॒ष्ट॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:12 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब शिष्य के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (पूषण्वन्तः) बहुत पुष्टिकर्त्ता विद्यमान हैं जिनके वे (ऋभवः) बुद्धिमान् आप लोग जैसे (सुकृत्) सुन्दर धर्म युक्त कर्मकर्त्ता (सुपाणिः) सुन्दर हस्तयुक्त (स्ववान्) बहुत आत्मजन है जिसके वह (ऋतावा) सत्य का प्रकाश करनेवाला (त्वष्टा) प्रकाशकर्त्ता (देवः) विद्वान् (नः) हम लोगों को (अवसे) रक्षण आदि के लिये (तानि) उन अपेक्षित पदार्थों को (धात्) धारण करे और (ग्रावाणः) मेघों के सदृश (अध्वरम्) पालन करनेवाले व्यवहार को (अतष्ट) सूक्ष्म करता है, वैसे ही हम लोगों के लिये (मादयध्वम्) आनन्द दीजिये ॥१२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे धार्मिक विद्वान् लोग मेघों के सदृश सबको आनन्द देते हैं, वैसे ही सब लोग विद्वानों को आनन्द देवें ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ शिष्यविषयमाह।

अन्वय:

हे पूषण्वन्त ऋभवो यूयं यथा सुकृत् सुपाणिः स्ववानृतावा त्वष्टा देवो नोऽवसे तानि धादूर्ध्वग्रावाण इवाऽध्वरमतष्ट तथाऽस्मान् मादयध्वम् ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सुकृत्) यः शोभनं धर्म्यं कर्म करोति (सुपाणिः) शोभनौ पाणी हस्तौ यस्य सः (स्ववान्) बहवः स्वे विद्यन्ते यस्य सः (ऋतावा) सत्यप्रकाशकः (देवः) विद्वान् (त्वष्टा) प्रकाशकः (अवसे) रक्षणाद्याय (तानि) (नः) अस्मभ्यम् (धात्) दधातु (पूषण्वन्तः) बहवः पूषणो विद्यन्ते येषान्ते (ऋभवः) मेधाविनः (मादयध्वम्) आनन्दयत (ऊर्ध्वग्रावाणः) मेघाः (अध्वरम्) पालकं व्यवहारम् (अतष्ट) तनूकुरुत ॥१२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा धार्मिका विद्वांसो मेघा इव सर्वानानन्दयन्ति तथैव सर्वे विदुषा आनन्दयन्तु ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे धार्मिक विद्वान लोक मेघांप्रमाणे सर्वांना आनंद देतात तसेच सर्व लोकांनी विद्वानांना आनंद द्यावा. ॥ १२ ॥