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रू॒पंरू॑पं म॒घवा॑ बोभवीति मा॒याः कृ॑ण्वा॒नस्त॒न्वं१॒॑ परि॒ स्वाम्। त्रिर्यद्दि॒वः परि॑ मुहू॒र्तमागा॒त्स्वैर्मन्त्रै॒रनृ॑तुपा ऋ॒तावा॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

rūpaṁ-rūpam maghavā bobhavīti māyāḥ kṛṇvānas tanvam pari svām | trir yad divaḥ pari muhūrtam āgāt svair mantrair anṛtupā ṛtāvā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

रू॒पम्ऽरू॑पम्। म॒घऽवा॑। बो॒भ॒वी॒ति॒। मा॒याः। कृ॒ण्वा॒नः। त॒न्व॑म्। परि॑। स्वाम्। त्रिः। यत्। दि॒वः। परि॑। मु॒हू॒र्तम्। आ। अगा॑त्। स्वैः। मन्त्रैः॑। अनृ॑तुऽपाः। ऋ॒तऽवा॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:53» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:20» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वानों के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (ऋतावा) सत्य से युक्त (मघवा) बहुत धन से युक्त (सूर्य्यः) सूर्य्य (दिवः) प्रकाशों को (मुहूर्त्तम्) दो घड़ी (स्वैः) अपने (मन्त्रैः) विचारों से (अनृतुपाः) नहीं ऋतुओं का पालन करनेवाला होकर (स्वाम्) अपने (तन्वम्) शरीर को (त्रिः) तीन बार (परि, आ) सब प्रकार (अगात्) प्राप्त होवें और (रूपंरूपम्) रूप-रूप के प्रति (मायाः) बुद्धियों को (कृण्वानः) करते हुए (परि, बोभवीति) अत्यन्त होता है उसको अध्यापक और उपदेश देनेवाला करें ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो परमेश्वर को लेके पृथिवीपर्यन्त पदार्थों के स्वरूप जानने और शीघ्र अन्य जनों के लिये विज्ञान देने और सूर्य्य के सदृश उत्तम शिक्षा सभ्यता और विनय के प्रकाश करनेवाले होवें, वे विद्याधर्म और राजधर्म के मन्त्र बढ़ाने में नियत करने के योग्य हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

यद्य ऋतावा मघवा सूर्य्यो दिवो मुहूर्त्तमिव स्वैर्मन्त्रैरनृतुपाः सन् स्वां तन्वं त्रिः पर्य्यागाद्रूपंरूपं प्रति मायाः कृण्वानः सन् परि बोभवीति तमध्यापकमुपदेष्टारञ्च कुर्य्युः ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (रूपंरूपम्) प्रतिरूपम् (मघवा) बहुधनवान् (बोभवीति) भृशं भवति (मायाः) प्रज्ञाः (कृण्वानः) (तन्वम्) शरीरम् (परि) सर्वतः (स्वाम्) स्वकीयाम् (त्रिः) त्रिवारम् (यत्) यः (दिवः) प्रकाशान् (परि) (मुहूर्त्तम्) घटिकाद्वयम् (आ) (अगात्) प्राप्नुयात् (स्वैः) स्वकीयैः (मन्त्रैः) विचारैः (अनृतुपाः) य ऋतून् पाति स ऋतुपा न ऋतुपा अनृतुपाः (ऋतावा) सत्यवान् ॥८॥
भावार्थभाषाः - ये परमेश्वरमारभ्य पृथिवीपर्य्यन्तानां पदार्थानां स्वरूपविदः सद्योऽन्येभ्यो विज्ञानप्रदाः सूर्य्य इव सुशिक्षासभ्यताविनयप्रकाशकाः स्युस्ते विद्याधर्मराजमन्त्रवर्द्धने नियोजनीयाः ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे परमेश्वरापासून पृथ्वीपर्यंत पदार्थांचे स्वरूप जाणणारे व इतरांना लवकरात लवकर विज्ञान देणारे व सूर्याप्रमाणे उत्तम शिक्षण, सभ्यता व विनय यांचा प्रकाश करणारे असतात त्यांना विद्याधर्म, राजधर्म वर्धित करण्यासाठी नियुक्त करावे. ॥ ८ ॥