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जा॒येदस्तं॑ मघव॒न्त्सेदु॒ योनि॒स्तदित्त्वा॑ यु॒क्ता हर॑यो वहन्तु। य॒दा क॒दा च॑ सु॒नवा॑म॒ सोम॑म॒ग्निष्ट्वा॑ दू॒तो ध॑न्वा॒त्यच्छ॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

jāyed astam maghavan sed u yonis tad it tvā yuktā harayo vahantu | yadā kadā ca sunavāma somam agniṣ ṭvā dūto dhanvāty accha ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

जा॒या। इत्। अस्त॑म्। म॒घ॒ऽव॒न्। सा। इत्। ऊँ॒ इति॑। योनिः॑। तत्। इत्। त्वा॒। यु॒क्ताः। हर॑यः। व॒ह॒न्तु॒। य॒दा। क॒दा। च॒। सु॒नवा॑म। सोम॑म्। अ॒ग्निः। त्वा॒। दू॒तः। ध॒न्वा॒ति॒। अच्छ॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:53» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब विद्वान् के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) ऐश्वर्य से युक्त ! जो (ते) आपकी (जाया) स्त्री (अस्तम्) गृह को प्राप्त होवे (सा) वह (इत्) ही (उ) भी सन्तान का (योनिः) कारण होवे (तत्) उसको और (त्वा) आपको (च, इत्) ही (युक्ताः) संयुक्त (हरयः) घोड़े (सोमम्) सोमलता के रस को (वहन्तु) धारण करें और (यदा) जब (कदा) कब हम लोग सोमलता के रस को (सुनवाम) संचित करें उसको आप (दूतः) शत्रुओं के सन्ताप देनेवाले (अग्निः) बिजुली के समान (धन्वाति) प्राप्त होवें (त्वा) आपको ही (अच्छ) उत्तम प्रकार प्राप्त हो ॥४॥
भावार्थभाषाः - जैसे श्रेष्ठ दो घोड़े ले चलनेवाले वाहन से सुखपूर्वक रथ के स्वामी को एक स्थान से दूसरे स्थान को प्राप्त कराते हैं, वैसे ही परस्पर में प्रसन्न और योग्य दो विद्वान् गृहाश्रम को शोभित करने को समर्थ हों ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ विद्वद्विषयमाह।

अन्वय:

हे मघवन् ! या ते जायाऽस्तं प्राप्नुयात्सेत् उ सन्तानस्य योनिर्भूयात् तत्तां त्वा चिदेव युक्ता हरयो सोमं वहन्तु। यदा कदा च वयं सोमं सुनवाम तं त्वं दूतोऽग्निश्च धन्वातीव त्वेदच्छाऽऽप्नोतु ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (जाया) पत्नी (इत्) एव (अस्तम्) गृहम् (मघवन्) ऐश्वर्ययुक्त (सा) (इत्) (उ) (योनिः) सन्ताननिमित्ता (तत्) ताम् (इत्) एव (त्वा) त्वाम् (युक्ताः) योजिताः (हरयः) अश्वाः (वहन्तु) (यदा) (कदा) (च) (सुनवाम) निष्पादयेम (सोमम्) (अग्निः) विद्युदिव (त्वा) (दूतः) यो दुनोति परितापयति शत्रून् सः (धन्वाति) प्राप्नुयात् (अच्छ) ॥४॥
भावार्थभाषाः - यथोत्तमौ द्वावश्वौ वोढेन रथेन सुखेन रथस्य स्वामिनं स्थानान्तरं प्रापयतस्तथैव परस्परस्मिन् प्रीतौ योग्यौ विद्वांसो गृहाश्रममलंकर्त्तुं शक्नुयाताम् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे उत्तम दोन घोडे रथाच्या स्वामीला वाहनातून सहजतेने एका स्थानाहून दुसऱ्या स्थानी पोहोचवितात तसेच परस्पर प्रसन्न व योग्य दोन विद्वान (स्त्री-पुरुष) गृहस्थाश्रम सुशोभित करण्यास समर्थ असावेत. ॥ ४ ॥