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प॒र॒शुं चि॒द्वि त॑पति शिम्ब॒लं चि॒द्वि वृ॑श्चति। उ॒खा चि॑दिन्द्र॒ येष॑न्ती॒ प्रय॑स्ता॒ फेन॑मस्यति॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

paraśuṁ cid vi tapati śimbalaṁ cid vi vṛścati | ukhā cid indra yeṣantī prayastā phenam asyati ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प॒र॒शुम्। चि॒त्। वि। त॒प॒ति॒। शि॒म्ब॒लम्। चि॒त्। वि। वृ॒श्च॒ति॒। उ॒खा। चि॒त्। इ॒न्द्र॒ येष॑न्ती। प्रऽय॑स्ता। फेन॑म्। अ॒स्य॒ति॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:53» मन्त्र:22 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:22


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजा के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य से युक्त ! जो आपकी सेना लोहार (परशुम्) परशारूप शस्त्र को (चित्) जैसे वैसे शत्रुओं को (वि, तपति) विशेष करके सन्ताप देती है (शिम्बलम्) शेमर वृक्ष के पुष्प वा पत्र को (चित्) जैसे (वि, वृश्चति) विशेष करके काटता है (प्रयस्ता) प्रेरित हुई (येषन्ती) वहता तथा प्राप्त हुआ (उखा) पाक करनेका पात्र (चित्) जैसे (फेनम्) फेने को वैसे शत्रुओं को (अस्यति) फेंकती है उसका आपसे सदा सत्कार करने योग्य है ॥२२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो राजा लोग श्रेष्ठ वीरों की सेना की रक्षा करते हैं, वे ही विजय को प्राप्त होकर शोभित होते हैं ॥२२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! या ते सेना अयस्कारः परशुं चिच्छत्रून् वि तपति शिम्बलं चिद्वि वृश्चति प्रयस्ता येषन्त्युखा चित् फेनमिव शत्रूनस्यति सा त्वया सदैव सत्कर्त्तव्या ॥२२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (परशुम्) कुठारम् (चित्) इव (वि) (तपति) विशेषेण सन्तापयति (शिम्बलम्) शल्मलीपुष्पम् पत्रं वा (चित्) इव (वि) विशेषेण (वृश्चति) छिनत्ति (उखा) पाकस्थाली (चित्) इव (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त (येषन्ती) स्रवन्ती (प्रयस्ता) प्रेरिता (फेनम्) (अस्यति) प्रक्षिपति ॥२२॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये राजानः प्रशस्तां वीरसेनां रक्षन्ति त एव विजयं प्राप्य विराजन्ते ॥२२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. जे राजे लोक श्रेष्ठ वीरांच्या सेनेचे रक्षण करतात तेच विजय प्राप्त करून सुशोभित होतात. ॥ २२ ॥