इन्द्रा॑पर्वता बृह॒ता रथे॑न वा॒मीरिष॒ आ व॑हतं सु॒वीराः॑। वी॒तं ह॒व्यान्य॑ध्व॒रेषु॑ देवा॒ वर्धे॑थां गी॒र्भिरिळ॑या॒ मद॑न्ता॥
indrāparvatā bṛhatā rathena vāmīr iṣa ā vahataṁ suvīrāḥ | vītaṁ havyāny adhvareṣu devā vardhethāṁ gīrbhir iḻayā madantā ||
इन्द्रा॑पर्वता। बृ॒ह॒ता। रथे॑न। वा॒मीः। इषः॑। आ। व॒ह॒त॒म्। सु॒ऽवीराः॑। वी॒तम्। ह॒व्यानि॑। अ॒ध्व॒रेषु॑। दे॒वा॒। वर्धे॑थाम्। गीः॒ऽभिः। इळ॑या। मद॑न्ता॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब चौबीस ऋचावाले तिरेपनवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजा की सेना के विषय को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजसेनाविषयमाह।
हे सभासेनेशौ ! युवामिन्द्रापर्वतेव बृहता रथेन सुवीरा वामीरिष आ वहतमध्वरेषु हव्यानि वीतमिळया मदन्ता देवा सन्तौ गीर्भिर्वर्द्धेथाम् ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्युत, मेघ, विद्वान, राजा, प्रजा व सेनेच्या कर्माचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.