वांछित मन्त्र चुनें

पू॒र्वीर॑स्य नि॒ष्षिधो॒ मर्त्ये॑षु पु॒रू वसू॑नि पृथि॒वी बि॑भर्ति। इन्द्रा॑य॒ द्याव॒ ओष॑धीरु॒तापो॑ र॒यिं॑ र॑क्षन्ति जी॒रयो॒ वना॑नि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pūrvīr asya niṣṣidho martyeṣu purū vasūni pṛthivī bibharti | indrāya dyāva oṣadhīr utāpo rayiṁ rakṣanti jīrayo vanāni ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पू॒र्वीः। अ॒स्य॒। निः॒ऽसि॑धः॑। मर्त्ये॑षु। पु॒रु। वसू॑नि। पृ॒थि॒वी। बि॒भ॒र्ति॒। इन्द्रा॑य। द्यावः॑। ओष॑धीः। उ॒त। आपः॑। र॒यिम्। र॒क्ष॒न्ति॒। जी॒रयः॑। वना॑नि॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:51» मन्त्र:5 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:15» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:5


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (जीरयः) वृद्ध होनेवाले मनुष्य (अस्य) इस राजा के (मर्त्येषु) मनुष्यों में (पूर्वीः) अनादि काल से सिद्ध (निष्षिधः) अत्यन्त सिद्ध करनेवालियों की (रक्षन्ति) रक्षा करते हैं और (पुरू) बहुत (वसूनि) द्रव्यों को (पृथिवी) भूमि के सदृश जो पुरुष (बिभर्त्ति) धारण करता है (द्यावः) सूर्य्य आदि के प्रकाश (इन्द्राय) ऐश्वर्य्य के लिये (रयिम्) लक्ष्मी और (वनानि) सन्मुख हों सुख जिनसे उनको (उत) भी (आपः) प्राण वा जल जैसे (ओषधीः) सोमलता और ओषधीयों की रक्षा करते हैं वैसे राज्य का (बिभर्त्ति) पोषण करता है, वही राजा होने के योग्य हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो मनुष्यों में धन विज्ञान और ओषधि धारण करते, वे ही राजाओं के कर्मचारी होने के योग्य हैं ॥५॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्यो ये जीरयोऽस्य मर्त्येषु पूर्वीर्निष्षिधो रक्षन्ति पुरू वसूनि पृथिवीव यो बिभर्त्ति द्याव इन्द्राय रयिं वनानि च उताप्याप ओषधी रक्षन्तीव राज्यं बिभर्त्ति स एव राजा भवितुमर्हति ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पूर्वीः) सनातनीः (अस्य) राज्ञः (निष्षिधः) नितरां साधिकाः (मर्त्येषु) मनुष्येषु (पुरू) पुरूणि बहूनि (वसूनि) द्रव्याणि (पृथिवी) (बिभर्त्ति) (इन्द्राय) ऐश्वर्य्याय (द्यावः) सूर्यादिप्रकाशः (ओषधीः) सोमाद्याः (उत) अपि (आपः) प्राणा जलानि (रयिम्) श्रियम् (रक्षन्ति) (जीरयः) ये जीर्यन्ते ते मनुष्याः (वनानि) वनन्ति सम्भजन्ति सुखानि यैस्तानि ॥५॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये मर्त्येषु धनानि विज्ञानं भैषज्यं धरन्ति त एव राजकर्मचारिणो भवितुमर्हन्ति ॥५॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जे धन, विज्ञान व औषधी धारण करतात, तेच राजाचे कर्मचारी होण्यायोग्य असतात. ॥ ५ ॥