प्र ते॑ अश्नोतु कु॒क्ष्योः प्रेन्द्र॒ ब्रह्म॑णा॒ शिरः॑। प्र बा॒हू शू॑र॒ राध॑से॥
pra te aśnotu kukṣyoḥ prendra brahmaṇā śiraḥ | pra bāhū śūra rādhase ||
प्र। ते॒। अ॒श्नो॒तु॒। कु॒क्ष्योः। प्र। इ॒न्द्र॒। ब्रह्म॑णा। शिरः॑। प्र। बा॒हू इति॑। शू॒र॒। राध॑से॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे इन्द्र ! यस्ते कुक्ष्योर्ब्रह्मणा सह रसः प्राश्नोतु। हे शूर तव शिरो बाहू राधसे प्राश्नोतु तं त्वं पालय ॥१२॥