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इ॒दं ह्यन्वोज॑सा सु॒तं रा॑धानां पते। पिबा॒ त्व१॒॑स्य गि॑र्वणः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

idaṁ hy anv ojasā sutaṁ rādhānām pate | pibā tv asya girvaṇaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒दम्। हि। अनु॑। ओज॑सा। सु॒तम्। रा॒धा॒ना॒म्। प॒ते॒। पिब॑। तु। अ॒स्य। गि॒र्व॒णः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:51» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:16» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (गिर्वणः) प्रार्थित हुए (राधानाम्) धनों के (पते) पालन करनेवाले ! आप (ओजसा) बल से (अस्य) इसके (इदम्) इस (सुतम्) सिद्ध किये गये सोमलतारूप रस का (पिब) पान कीजिये (हि) निश्चय से और पान करने की इच्छा से इस सोमलता का पान करो ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप निश्चय सब काल में धन और ऐश्वर्य की रक्षा करके और जो प्राप्त राज्य उसकी देखभाल से वृद्धि करके सुखी होइये ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे गिर्वणो राधानां पते त्वमोजसाऽस्येदं सुतं तु पिब हि अनु पिपासयेदं पिब ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इदम्) (हि) खलु (अनु) (ओजसा) बलेन (सुतम्) साधितम् (राधानाम्) धनानाम् (पते) पालक (पिब)। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (तु) (अस्य) (गिर्वणः) यो गीर्यते याच्यते तत्सम्बुद्धौ ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजँस्त्वं हि सदैव धनैश्वर्य्यं रक्षित्वा प्राप्तं राज्यमन्वेक्षणेन वर्द्धयित्वा सुखी भव ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू निश्चयपूर्वक नेहमी धन व ऐश्वर्याचे रक्षण करून राज्याची देखभाल करून त्याला उन्नत करून सुखी हो. ॥ १० ॥