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यु॒ध्मस्य॑ ते वृष॒भस्य॑ स्व॒राज॑ उ॒ग्रस्य॒ यूनः॒ स्थवि॑रस्य॒ घृष्वेः॑। अजू॑र्यतो व॒ज्रिणो॑ वी॒र्या॒३॒॑णीन्द्र॑ श्रु॒तस्य॑ मह॒तो म॒हानि॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yudhmasya te vṛṣabhasya svarāja ugrasya yūnaḥ sthavirasya ghṛṣveḥ | ajūryato vajriṇo vīryāṇīndra śrutasya mahato mahāni ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒ध्मस्य॑। ते॒। वृ॒ष॒भस्य॑। स्व॒ऽराजः॑। उ॒ग्रस्य॑। यूनः॑। स्थवि॑रस्य। घृष्वेः॑। अजू॑र्यतः। व॒ज्रिणः॑। वी॒र्या॑णि। इन्द्र॑। श्रु॒तस्य॑। म॒ह॒तः। म॒हानि॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:46» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:10» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले छियालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में राजा कैसा हो, इस विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) अत्यन्त ऐश्वर्य के दाता ! जिस (युध्मस्य) युद्ध करने और (स्वराजः) अपने से प्रकाशित (वृषभस्य) बलवाले (उग्रस्य) तेजस्वी स्वभाव और (यूनः) यौवन अवस्था को प्राप्त पुरुष तथा (स्थविरस्य) वृद्धावस्थायुक्त पुरुष के और (घृष्वेः) शत्रुओं को घसीटनेवाले (अजूर्य्यतः) शरीर की शिथिलता से रहित और (वज्रिणः) बहुत प्रकार के शस्त्रों से युक्त (महतः) सेवा करने योग्य (श्रुतस्य) प्रसिद्ध (ते) आपके जो (महानि) श्रेष्ठ (वीर्य्याणि) वीर पुरुषों के कर्म हैं, उनसे युक्त आप हम लोगों से सत्कार पाने योग्य हैं ॥१॥
भावार्थभाषाः - जो संपूर्ण लक्षणों से युक्त युवा वा वृद्ध भी राजा हो, वैसे ही अपने प्रयत्न से अपने सामर्थ्य का बढ़ानेवाला होवे ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजा कीदृशो भवेदित्याह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! यस्य युध्मस्य स्वराजो वृषभस्योग्रस्य यूनः स्थविरस्य घृष्वेरजूर्यतो वज्रिणो महतः श्रुतस्य ते तव यानि महानि वीर्य्याणि सन्ति तैर्युक्तस्त्वमस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (युध्मस्य) योद्धुं शीलस्य (ते) तव (वृषभस्य) बलिष्ठस्य (स्वराजः) यः स्वेन राजते तस्य (उग्रस्य) तेजस्विस्वभावस्य (यूनः) यौवनावस्थां प्राप्तस्य (स्थविरस्य) वृद्धस्य (घृष्वेः) शत्रूणां घर्षकस्य (अजूर्यतः) अजीर्णस्य (वज्रिणः) वज्रं बहुविधं शस्त्रं विद्यते यस्य तस्य (वीर्य्याणि) वीरस्य कर्माणि (इन्द्र) परमैश्वर्य्ययोजक (श्रुतस्य) प्रसिद्धस्य (महतः) पूज्यस्य (महानि) ॥१॥
भावार्थभाषाः - यदि सर्वलक्षणसम्पन्नो युवा वा वृद्धोऽपि राजा स्यात्तथैव प्रयत्नेन स्वसामर्थ्यवर्द्धको भवेत् ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात राजा, विद्युत व पृथ्वी इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन करण्याने या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - जर संपूर्ण लक्षणांनी युक्त राजा वृद्ध किंवा तरुण असेल तर प्रयत्नपूर्वक त्याने सामर्थ्य वाढवावे. ॥ १ ॥