आ या॑ह्य॒र्वाङुप॑ वन्धुरे॒ष्ठास्तवेदनु॑ प्र॒दिवः॑ सोम॒पेय॑म्। प्रि॒या सखा॑या॒ वि मु॒चोप॑ ब॒र्हिस्त्वामि॒मे ह॑व्य॒वाहो॑ हवन्ते॥
ā yāhy arvāṅ upa vandhureṣṭhās taved anu pradivaḥ somapeyam | priyā sakhāyā vi mucopa barhis tvām ime havyavāho havante ||
आ। या॒हि॒। अ॒र्वाङ्। उप॑। व॒न्धु॒रे॒ऽस्थाः। तव॑। इत्। अनु॑। प्र॒ऽदिवः॑। सो॒म॒ऽपेय॑म्। प्रि॒या। सखा॑या। वि। मु॒च॒। उप॑। ब॒र्हिः। त्वाम्। इ॒मे। ह॒व्य॒ऽवाहः॑। ह॒व॒न्ते॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब आठ ऋचावाले तैंतालीसवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में विद्वानों के विषय को कहते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वद्विषयमाह।
हे विद्वंस्त्वमर्वाङ् सन् यस्तव वन्धुरेष्ठा रथोऽस्ति तेन प्रदिवः सोमपेयमुपायाहि यौ प्रिया सखायाऽध्यापकोपदेशकौ तावुपायाहि। यद्बर्हिस्त्वामन्विमे तद्विमुच यान् हव्यवाह उपहवन्ते तैस्सहेद्दुःखं विमुच ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात विद्वान, सखी, सोमपान इत्यादींच्या गुणांचे वर्णन करण्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती आहे, हे जाणावे.