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तुभ्येदि॑न्द्र॒ स्व ओ॒क्ये॒३॒॑ सोमं॑ चोदामि पी॒तये॑। ए॒ष रा॑रन्तु ते हृ॒दि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tubhyed indra sva okye somaṁ codāmi pītaye | eṣa rārantu te hṛdi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तुभ्य॑। इत्। इ॒न्द्र॒। स्वे। ओ॒क्ये॑। सोम॑म्। चो॒दा॒मि॒। पी॒तये॑। ए॒षः। र॒र॒न्तु॒। ते॒। हृ॒दि॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:42» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:6» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्ययुक्त जन ! जो (एषः) यह (ते) आपके (हृदि) हृदय में (रारन्तु) अत्यन्त रमैं उस (सोमम्) रस को (स्वे) अपने (ओक्ये) गृह में (पीतये) पीने को (तुभ्य) आपके लिये (इत्) ही (चोदामि) प्रेरणा करता हूँ ॥८॥
भावार्थभाषाः - प्राणी लोग जो खाते और पीते हैं, वह सब पदार्थ रुधिर आदि हो और हृदय में फैलकर मस्तक के द्वारा सर्वत्र फैलता है ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! य एष ते हृदि रारन्तु तं सोमं स्व ओक्ये पीतये तुभ्येच्चोदामि ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तुभ्य) तुभ्यम्। अत्र सुपां सुलुगिति विभक्तेर्लुक्। (इत्) एव (इन्द्र) ऐश्वर्य्ययुक्त (स्वे) स्वकीये (ओक्ये) गृहे (सोमम्) रसम् (चोदामि) प्रेरयामि (पीतये) (एषः) (रारन्तु) भृशं रमताम् (ते) तव (हृदि) हृदये ॥८॥
भावार्थभाषाः - प्राणिभिर्यद्भुज्यते पीयते च तत्सर्वं रुधिरादिकं भूत्वा हृदि संसृत्य मस्तकद्वारा सर्वत्र प्रसरति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्राणी जे खातात-पितात ते सर्व पदार्थ रक्त इत्यादी बनून हृदयात पसरून मस्तकाद्वारे सर्वत्र पसरतात. ॥ ८ ॥