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अ॒र्वा॒वतो॑ न॒ आ ग॑हि परा॒वत॑श्च वृत्रहन्। इ॒मा जु॑षस्व नो॒ गिरः॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

arvāvato na ā gahi parāvataś ca vṛtrahan | imā juṣasva no giraḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒र्वा॒ऽवतः॑। नः॒। आ। ग॒हि॒। प॒रा॒ऽवतः॑। च॒। वृ॒त्र॒ह॒न्। इ॒माः। जु॒ष॒स्व॒। नः॒। गिरः॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:40» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:2» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृत्रहन्) धन को प्राप्त होनेवाले ! आप (अर्वावतः) प्रशंसा करने योग्य घोड़ों से युक्त (नः) हमलोगों को (परावतः) दूर देश से (च) और समीपे से (आ) सब ओर से (गाह) प्राप्त हूजिये और (नः) हम लोगों की (इमाः) इन (गिरः) वाणियों का (जुषस्व) सेवन करो ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! दूर वा समीप में स्थित सेना के अङ्ग शस्त्र आदि से युक्त वीर हम लोग जब आपको पुकारैं, उसी समय आपको आना चाहिये तथा हम लोगों के वचन सुनना और यथार्थ न्याय करना चाहिये ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे वृत्रहँस्त्वमर्वावतो नोऽस्मान् परावतश्चागहि च इमा गिरो जुषस्व ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्वावतः) प्रशस्ता अश्वा विद्यन्ते येषाम् (नः) अस्मान् (आ) समन्तात् (गहि) प्राप्नुहि (परावतः) दूरदेशात् (च) समीपात् (वृत्रहन्) यो वृत्रं धनं हन्ति प्राप्नोति तत्सम्बुद्धौ (इमाः) (जुषस्व) सेवस्व (नः) अस्माकम् (गिरः) वाचः ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! दूरे समीपे वा स्थिता सेनाङ्गयुक्ता वीरा वयं यदा भवन्तमाह्वयेम तदैव श्रीमताऽऽगन्तव्यमस्माकं वचनानि श्रोतव्यानि च यथार्थो न्यायश्च कर्त्तव्यः ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! दूर किंवा जवळ असलेली सेना व शस्त्रास्त्रांनी सज्ज असलेल्या आम्ही वीर पुरुषांनी तुला आवाहन करताच तू आले पाहिजेस व आमचे बोलणे ऐकून यथार्थ न्याय केला पाहिजेस. ॥ ८ ॥