वांछित मन्त्र चुनें

तन्न॑स्तु॒रीप॒मध॑ पोषयि॒त्नु देव॑ त्वष्ट॒र्वि र॑रा॒णः स्य॑स्व। यतो॑ वी॒रः क॑र्म॒ण्यः॑ सु॒दक्षो॑ यु॒क्तग्रा॑वा॒ जाय॑ते दे॒वका॑मः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tan nas turīpam adha poṣayitnu deva tvaṣṭar vi rarāṇaḥ syasva | yato vīraḥ karmaṇyaḥ sudakṣo yuktagrāvā jāyate devakāmaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तत्। नः॒। तु॒रीप॑म्। अध॑। पो॒ष॒यि॒त्नु। देव॑। त्व॒ष्टः॒। वि। र॒रा॒णः। स्य॒स्वेति॑ स्यस्व। यतः॑। वी॒रः। क॒र्म॒ण्यः॑। सु॒ऽदक्षः॑। यु॒क्तऽग्रा॑वा। जाय॑ते। दे॒वऽका॑मः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:4» मन्त्र:9 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:9


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) दिव्य गुणों के देनेवाले ! (त्वष्टः) छिन्न-भिन्न कर्ता (रराणः) रमण करते हुए आप (नः) हमारी जो (तुरीपम्) शीघ्रकर्ता यज्ञ (अध) इसके अनन्तर (पोषयित्नु) पुष्टि की करनेवाली यज्ञक्रिया (तत्) उन दोनों को (वि, स्यस्व) बीच में करो जिससे हम लोगों के कुल में (सुदक्षः) उत्तम बली (युक्तग्रावा) जिसमें मेघयुक्त हैं (कर्मण्यः) जो कर्म से सिद्ध होता है (देवकामः) और दिव्यगुणों वा विद्वानों की कामना करता ऐसा (वीरः) शुभगुणों में व्याप्त होनेवाला वीरपुरुष (जायते) उत्पन्न होता है ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् जन हमारे लिये दुःख से तारने और पुष्टि करनेवाले उपदेश को करें, उन्हें शुभ गुण-कर्म-स्वभाव की कामना करनेवाले हम लोग सदैव सेवें, जिससे हमारा कुल उत्कर्ष उन्नति को प्राप्त हो ॥९॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे देव त्वष्टः रराणः संस्त्वं नो यत्तुरीपमध पोषयित्नु वर्त्तते तद्विस्यस्व यतो नोऽस्माकं कुले सुदक्षो युक्तग्रावा कर्मण्यो देवकामो वीरो जायते ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तत्) (नः) अस्माकम् (तुरीपम्) तारकं शीघ्रकारी। अत्र तुर धातोर्बाहुलकादौणादिक ईय प्रत्ययः। (अध) अथ (पोषयित्नु) पोषयित्री (देव) दिव्यगुणप्रद (त्वष्टः) छेदक (वि) (रराणः) रममाणः (स्यस्व) अन्तःकुरु (यतः) यस्मात् (वीरः) शुभगुणव्यापनशीलः (कर्मण्यः) यः कर्मणा संपद्यते सः (सुदक्षः) उत्तमबलः (युक्तग्रावा) युक्तो ग्रावा मेघो यस्मिन्सः (जायते) (देवकामः) यो देवान् कामयते सः ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसोऽस्मभ्यं दुःखात्तारकं पुष्टिकरमुपदेशं कुर्युस्तान् शुभगुणकर्मस्वभावकामा वयं सदा सेवेमहि येनाऽस्माकं कुलमुत्कर्षमाप्नुयात् ॥९॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान दुःखातून तारणारे, पुष्टीचा उपदेश करणारे असतात, आम्ही त्यांच्या शुभ गुण, कर्म स्वभावाची इच्छा करून सदैव त्यांचे सेवन करावे. ज्यामुळे आमचे कुल उत्कर्षयुक्त व उन्नतीयुक्त व्हावे. ॥ ९ ॥