वांछित मन्त्र चुनें

दैव्या॒ होता॑रा प्रथ॒मा न्यृ॑ञ्जे स॒प्त पृ॒क्षासः॑ स्व॒धया॑ मदन्ति। ऋ॒तं शंस॑न्त ऋ॒तमित्त आ॑हु॒रनु॑ व्र॒तं व्र॑त॒पा दीध्या॑नाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

daivyā hotārā prathamā ny ṛñje sapta pṛkṣāsaḥ svadhayā madanti | ṛtaṁ śaṁsanta ṛtam it ta āhur anu vrataṁ vratapā dīdhyānāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दैव्या॑। होता॑रा। प्र॒थ॒मा। नि। ऋ॒ञ्जे॒। स॒प्त। पृ॒क्षासः॑। स्व॒धया॑। म॒द॒न्ति॒। ऋ॒तम्। शंस॑न्तः। ऋ॒तम्। इत्। ते। आ॒हुः॒। अनु॑। व्र॒तम्। व्र॒त॒ऽपाः। दीध्या॑नाः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:4» मन्त्र:7 | अष्टक:2» अध्याय:8» वर्ग:23» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:7


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (प्रथमा) विस्तार करनेवाले (दैव्या) दिव्य गुणी (होतारा) अनेक पदार्थों के ग्रहणकर्ता (सप्त) सात प्रकार के होमने योग्य पदार्थों को अच्छे प्रकार धारण करते हैं वा जो (ऋतम्) जल का (पृक्षासः) संबन्ध करनेवाले (ऋतम्) सत्य की (इत्) ही (शंसन्तः) स्तुति करते हुए (दीध्यानाः) देदीप्यमान (व्रतपाः) उत्तम शील की रक्षा करनेवाले (अनु, व्रतम्) अनुकूल शील को (आहुः) कहें (ते) वे (स्वधया) अन्न और जल से (मदन्ति) हर्षित होते हैं, इन सबको मैं (नि, ऋञ्जे) न नष्ट करूँ ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो यज्ञ की आहुतियों से शुद्ध पवन, जल और अन्नादिकों का सेवन करते हैं, वे सुशील होते हुए प्रशंसावाले होकर आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥७॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यौ प्रथमा दैव्या होतारा सप्तविधानि हवींष्याधत्तो य ऋतं पृक्षास ऋतमिच्छंसन्तो दीध्याना व्रतपा अनुव्रतमाहुस्ते स्वधया मदन्ति तानहं न्यृञ्जे ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (दैव्या) दिव्यगुणावेव (होतारा) दातारौ (प्रथमा) विस्तारकौ (नि) (ऋञ्जे) भर्जयामि (सप्त) (पृक्षासः) संपर्काः (स्वधया) जलेनान्नेन वा (मन्दति) हृष्यन्ति (ऋतम्) जलम् (शंसन्तः) स्तुवन्तः (ऋतम्) सत्यम् (इत्) एव (ते) (आहुः) कथयन्तु (अनु) (व्रतम्) शीलम् (व्रतपाः) सुशीलरक्षका (दीध्यानाः) देदीप्यमानाः ॥७॥
भावार्थभाषाः - ये यज्ञाहुतिभिः शुद्धानि पवनजलान्नादीनि सेवन्ते ते सुशीलाः सन्तः प्रशंसका भूत्वाऽऽनन्दन्ति ॥७॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे यज्ञाच्या आहुतींनी शुद्ध वायू, जल, अन्न इत्यादीचे सेवन करतात ते सुशील व प्रशंसायुक्त बनून आनंद भोगतात. ॥ ७ ॥