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इ॒न्द्रि॒याणि॑ शतक्रतो॒ या ते॒ जने॑षु प॒ञ्चसु॑। इन्द्र॒ तानि॑ त॒ आ वृ॑णे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indriyāṇi śatakrato yā te janeṣu pañcasu | indra tāni ta ā vṛṇe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ॒न्द्रि॒याणि॑। श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो। या। ते॒। जने॑षु। प॒ञ्चऽसु॑। इन्द्र॑। तानि॑। ते॒। आ। वृ॒णे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:37» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शतक्रतो) अपार बुद्धियुक्त (इन्द्र) ऐश्वर्य्य को योग करनेवाले ! पञ्चसु पाँच राज्य, सेना, कोश, दूतत्व, प्राड्विवाकत्व आदि पदवियों से युक्त अधिकारी और (जनेषु) प्रत्यक्ष अध्यक्षों में (या) जो (ते) आपके (इन्द्रियाणि) जीने के चिह्न हैं (तानि) उन (ते) आपके चिह्नों को मैं (आ) (वृणे) उत्तम गुणों से आच्छादन करता हूँ ॥९॥
भावार्थभाषाः - वही पुरुष राज्य करने के योग्य है, जो मन्त्रियों के चरित्रों को नेत्र से रूप के सदृश प्रत्यक्ष करता है, जैसे शरीर के इन्द्रिय के गोलक अर्थात् काले तारेवाले नेत्र के संबन्ध से जीव के सम्पूर्ण कार्य्य सिद्ध होते हैं, वैसे राजा मन्त्री और सेना के योग से राजकार्यों को सिद्ध कर सकता है ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे शतक्रतो इन्द्र ! पञ्चसु जनेषु या त इन्द्रियाणि सन्ति तानि तेऽहमावृणे ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रियाणि) इन्द्रस्य जीवस्य लिङ्गानि (शतक्रतो) अमितबुद्धे (या) यानि (ते) तव (जनेषु) प्रसिद्धेष्वध्यक्षेषु (पञ्चसु) राज्यसेनाकोशदूतत्वप्राड्विवाकत्वसंपन्नेष्वधिकारिषु (इन्द्र) ऐश्वर्ययोजक (तानि) (ते) तव (आ) (वृणे) शुभगुणैराच्छादयामि ॥९॥
भावार्थभाषाः - स एव राज्यं कर्त्तुमर्हति योऽमात्यानां चरित्राणि चक्षुषा रूपमिव प्रत्यक्षीकरोति यथा शरीरेन्द्रियगोलकसम्बन्धेन जीवस्य सर्वाणि कार्याणि सिध्यन्ति तथैव राजाऽमात्यसेनायोगेन राजकार्याणि साद्धुं शक्नोति ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे नेत्रांनी रूप पाहिले जाते तसे जो मंत्र्यांचे चरित्र पाहतो तोच पुरुष राज्य करण्यायोग्य असतो. जसे इंद्रियांद्वारे जीवाचे संपूर्ण कार्य सिद्ध होते तसे राजा मंत्री व सेनेद्वारे राज्य कार्य सिद्ध करू शकतो. ॥ ९ ॥