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स॒सानात्याँ॑ उ॒त सूर्यं॑ ससा॒नेन्द्रः॑ ससान पुरु॒भोज॑सं॒ गाम्। हि॒र॒ण्यय॑मु॒त भोगं॑ ससान ह॒त्वी दस्यू॒न्प्रार्यं॒ वर्ण॑मावत्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sasānātyām̐ uta sūryaṁ sasānendraḥ sasāna purubhojasaṁ gām | hiraṇyayam uta bhogaṁ sasāna hatvī dasyūn prāryaṁ varṇam āvat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒सान॑। अत्या॑न्। उ॒त। सूर्य॑म्। स॒सा॒न॒। इन्द्रः॑। स॒सा॒न॒। पु॒रु॒ऽभोज॑सम्। गाम्। हि॒र॒ण्यय॑म्। उ॒त। भोग॑म्। स॒सा॒न॒। ह॒त्वी। दस्यू॑न्। प्र। आर्य॑म्। वर्ण॑म्। आ॒व॒त्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:34» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:16» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - वह (इन्द्रः) सम्पूर्ण ऐश्वर्य से युक्त राजा वा मन्त्रियों का समूह (अत्यान्) उत्तम शिक्षा से घोड़ों के (ससान) विभाग को और (सूर्यम्) सूर्य के सदृश प्रतापयुक्त वीर पुरुष को (ससान) अलग करै (पुरुभोजसम्) बहुतों का पालन वा बहुतों को नहीं भोजन देनेवाले पुरुष की (गाम्) वाणी वा भूमि का (उत) और (हिरण्ययम्) सुवर्ण आदि पदार्थों का (ससान) विभाग करै वह पुरुष (दस्यून्) साहस कर्म करनेवाले चोर आदि का (हत्वी) नाश करके (आर्य्यम्) उत्तम गुण कर्म स्वभावयुक्त धार्मिक (वर्णम्) स्वीकार करने योग्य पुरुष की (प्र) (आवत्) रक्षा करै ॥९॥
भावार्थभाषाः - जो लोग उत्तम प्रकार परीक्षा करके भले और बुरे घोड़े, वीरपुरुष, न्यायाधीश, लक्ष्मी और उत्तम भोग का विभाग कर सकें, वे ही पुरुष दुष्ट पुरुषों का नाश कर श्रेष्ठ पुरुषों की रक्षा कर सकैं ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

स इन्द्रो राजा अमात्यसमूहो वाऽत्यान् ससान सूर्य्यं ससान पुरुभोजसं गामुत हिरण्ययं ससानोत भोगं ससान दस्यून्हत्व्यार्यं वर्णं प्रावत् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ससान) विभजेत् (अत्यान्) सुशिक्षयाऽश्वान् (उत) (सूर्य्यम्) सूर्य्यमिव वर्त्तमानं प्राज्ञम् (ससान) (इन्द्रः) सकलैश्वर्ययुक्तः सर्वाधिपतिः (ससान) (पुरुभोजसम्) बहूनां पालकं बह्वन्नभोक्तारं वा (गाम्) वाणीं भूमिं वा (हिरण्ययम्) सुवर्णादिप्रचुरं धनम् (उत) (भोगम्) (ससान) (हत्वी) (दस्यून्) (प्र) (आर्यम्) उत्तमगुणकर्मस्वभावं धार्मिकम् (वर्णम्) स्वीकर्त्तव्यम् (आवत्) रक्षेत् ॥९॥
भावार्थभाषाः - ये सुपरीक्ष्य श्रेष्ठाश्रेष्ठानश्वान् वीरान् न्यायाधीशान् श्रियं भोगं च विभक्तुं शक्नुयुस्त एव दुष्टान् हत्वा श्रेष्ठान् रक्षितुं शक्नुयुः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक उत्तम प्रकारे परीक्षा करून चांगले वाईट घोडे, वीर पुरुष, न्यायाधीश, लक्ष्मी व उत्तम भोगाचे विभाजन करू शकतात तेच पुरुष दुष्ट पुरुषांचा नाश करून श्रेष्ठ पुरुषांचे रक्षण करू शकतात. ॥ ९ ॥