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अता॑रिषुर्भर॒ता ग॒व्यवः॒ समभ॑क्त॒ विप्रः॑ सुम॒तिं न॒दीना॑म्। प्र पि॑न्वध्वमि॒षय॑न्तीः सु॒राधा॒ आ व॒क्षणाः॑ पृ॒णध्वं॑ या॒त शीभ॑म्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

atāriṣur bharatā gavyavaḥ sam abhakta vipraḥ sumatiṁ nadīnām | pra pinvadhvam iṣayantīḥ surādhā ā vakṣaṇāḥ pṛṇadhvaṁ yāta śībham ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अता॑रिषुः। भ॒र॒ताः। ग॒व्यवः॑। सम्। अभ॑क्त। विप्रः॑। सु॒ऽम॒तिम्। न॒दीना॑म्। प्र। पि॒न्व॒ध्व॒म्। इ॒षय॑न्तीः। सु॒ऽराधा॑। आ। व॒क्षणाः॑। पृ॒णध्व॑म्। या॒त। शीभ॑म्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:33» मन्त्र:12 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:14» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (गव्यवः) अपनी उत्तम शिक्षायुक्त वाणी की इच्छा करने तथा (भरताः) धारण और पोषण करनेवाले नौका आदि से (नदीनाम्) नदियों के सदृश वर्त्तमान पढ़ी हुई स्त्रियों के ज्ञानप्रवाहों को (अतारिषुः) तरैं, जैसे (सुराधाः) उत्तम धनयुक्त (विप्रः) बुद्धिमान् पुरुष (सुमतिम्) उत्तम बुद्धि को (सम्, अभक्त) अच्छे प्रकार सेवन करे और जैसे (वक्षणाः) बहती हुईं नदियाँ और बहती हैं वैसे (इषयन्तीः) अन्न को सिद्ध करनेवाली स्त्रियों को (प्र, पिन्वध्वम्) सेवन करो, सबका (आ) (पृणध्वम्) पालन करो और उत्तम गुणों को (शीभम्) शीघ्र (यात) प्राप्त होओ ॥१२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि नदी और समुद्र आदि जलाशयों को विद्वानों के सदृश पार होके सुख का शीघ्र सेवन करें ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथा गव्यवो भरता नौकादिना नदीनां प्रवाहानतारिषुर्यथा सुराधा विप्रः सुमतिं समभक्त यथा वक्षणा वहन्ति तथेषयन्तीः प्रपिन्वध्वं सर्वानापृणध्वं शुभगुणान् शीभं यात ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अतारिषुः) तरन्तु (भरताः) धारकपोषकाः (गव्यवः) आत्मनो गां सुशिक्षितां वा वाचमिच्छवः (सम्) (अभक्त) सम्यग्भजेत (विप्रः) मेधावी (सुमतिम्) श्रेष्ठां बुद्धिम् (नदीनाम्) सरितामिव वर्त्तमानानां विदुषीणाम् (प्र) (पिन्वध्वम्) सेवध्वम् (इषयन्तीः) इषमन्नं कुर्वन्त्यः (सुराधः) शोभनं राधो यस्य सः (आ) (वक्षणाः) वहमाना नद्यः (पृणध्वम्) पावयध्वम् (यात) प्राप्नुत (शीभम्) क्षिप्रम्। शीभमिति क्षिप्रना०। निघं० २। १५ ॥१२॥
भावार्थभाषाः - मनुष्या नदीसमुद्रादीन् जलाशयान् विद्वद्वत्प्रतीर्य्य सुखं सद्यः सेवन्ताम् ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसे विद्वान लोक नदी व समुद्र इत्यादी जलशयातून (नौकांद्वारे) तरून जातात तसे माणसांनी उत्तम बुद्धी, शुभ गुण प्राप्त करून सुखी व्हावे. ॥ १२ ॥