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तम॑ङ्गिर॒स्वन्नम॑सा सप॒र्यन्नव्यं॑ कृणोमि॒ सन्य॑से पुरा॒जाम्। द्रुहो॒ वि या॑हि बहु॒ला अदे॑वीः॒ स्व॑श्च नो मघवन्त्सा॒तये॑ धाः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tam aṅgirasvan namasā saparyan navyaṁ kṛṇomi sanyase purājām | druho vi yāhi bahulā adevīḥ svaś ca no maghavan sātaye dhāḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

तम्। अ॒ङ्गि॒र॒स्वत्। नम॑सा। स॒प॒र्यन्। नव्य॑म्। कृ॒णो॒मि॒। सन्य॑से। पु॒रा॒ऽजाम्। द्रुहः॑। वि। या॒हि॒। ब॒हु॒लाः। अदे॑वीः। स्व१॒॑रिति॑ स्वः॑। च॒। नः॒। म॒घ॒ऽव॒न्। सा॒तये॑। धाः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:31» मन्त्र:19 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:8» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:19


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा और प्रजा के विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अङ्गिरस्वत्) विद्वानों के सहित विराजमान (मघवन्) श्रेष्ठ धनयुक्त राजन् ! (पुराजाम्) पहिले उत्पन्न और (नव्यम्) नवीन के सदृश वर्त्तमान (तम्) प्रथम कहे हुए आपकी मैं (सन्यसे) अलग-अलग बटे हुए पदार्थों में प्रयत्न करते हुए के लिये (नमसा) सत्कारपूर्वक (सपर्य्यन्) सेवा करता हुआ (कृणोमि) प्रसिद्ध करता हूँ आप (बहुलाः) बहुत (द्रुहः) शत्रुतायुक्त (अदेवीः) विद्यारहित स्त्रियों को (वि, याहि) दूर कीजिये (नः) हम लोगों के (सातये) संविभाग के लिये (स्वः, च) सुख को भी (धाः) धारण कीजिये ॥१९॥
भावार्थभाषाः - प्रजारूप जनों को चाहिये कि न्याय विनय आदि शुभ गुणों से युक्त राजा आदि जनों का सदा ही सत्कार करें और राजा आदि पुरुषों को चाहिये कि प्रजाजनों का सदा पिता के तुल्य पालन करें और स्त्रियों को विद्यायुक्त करें, इससे अनेक प्रकार से सुख की वृद्धि करें ॥१९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजाविषयमाह।

अन्वय:

हे अङ्गिरस्वन्मघवन् राजन्पुराजां नव्यं तं त्वामहं सन्यसे नमसा सपर्यन् कृणोमि त्वं बहुला द्रुहोऽदेवीर्वियाहि दूरीकुरु नः सातये स्वश्च धाः ॥१९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (तम्) पूर्वोक्तं राजानम् (अङ्गिरस्वत्) अङ्गिरसो विद्वांसो विद्यन्ते यस्य तत्सम्बुद्धौ (नमसा) सत्कारेणान्नेन वा (सपर्यन्) सेवमानः (नव्यम्) नवमिव वर्त्तमानम् (कृणोमि) (सन्यसे) सनां विभजतां मध्ये प्रयत्नाय (पुराजाम्) पुराजातम् (द्रुहः) द्रोग्ध्रीः (वि) (याहि) प्राप्नुहि (बहुलाः) (अदेवीः) अविदुषीः स्त्रियः (स्वः) सुखम् (च) (नः) अस्माकम् (मघवन्) पूजनीयवित्त (सातये) संविभागाय (धाः) धेहि ॥१९॥
भावार्थभाषाः - प्रजास्थैर्जनैर्न्यायविनयादिशुभगुणान्विता राजादयो जनाः सदैव सत्कर्त्तव्या राजादिपुरुषैश्च प्रजाः सदा पितृवत्पालनीयाः स्त्रियश्च विदुष्यः संपादनीया अनेन बहुविधं सुखमुन्नेयम् ॥१९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रजेने न्याय, विनय इत्यादी शुभ गुणांनी युक्त राजा इत्यादी जनांचा सदैव सत्कार करावा व राजाने प्रजेचे सदैव पित्याप्रमाणे पालन करावे, स्त्रियांना विद्यायुक्त करावे व अनेक प्रकारच्या सुखाची वृद्धी करावी. ॥ १९ ॥