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सं॒पश्य॑माना अमदन्न॒भि स्वं पयः॑ प्र॒त्नस्य॒ रेत॑सो॒ दुघा॑नाः। वि रोद॑सी अतप॒द्घोष॑ एषां जा॒ते निः॒ष्ठामद॑धु॒र्गोषु॑ वी॒रान्॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sampaśyamānā amadann abhi svam payaḥ pratnasya retaso dughānāḥ | vi rodasī atapad ghoṣa eṣāṁ jāte niṣṭhām adadhur goṣu vīrān ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒म्ऽपश्य॑मानाः। अ॒म॒द॒न्। अ॒भि। स्वम्। पयः॑। प्र॒त्नस्य॑। रेत॑सः। दुघा॑नाः। वि। रोद॑सी॒ इति॑। अ॒त॒प॒त्। घोषः॑। ए॒षा॒म्। जा॒ते। निः॒ऽस्थाम्। अद॑धुः। गोषु॑। वी॒रान्॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:31» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:6» मन्त्र:5 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - जो लोग (स्वम्) अपने को (संपश्यमानाः) उत्तम प्रकार देखते और (प्रत्नस्य) प्राचीन (रेतसः) वीर्य के (पयः) दुग्ध को (दुघानाः) पूर्ण करते हुए (अभि) सन्मुख (अमदन्) आनन्द करते हैं (एषाम्) इन (निःष्ठाम्) उत्तम प्रकार स्थित विद्वानों की (घोषः) वाणी सूर्य्य जैसे (रोदसी) अन्तरिक्ष पृथिवी को वैसे दुष्ट पुरुषों को (वि) (अतपत्) तपाती है वे पुरुष (जाते) उत्पन्न हुए इस संसार में (गोषु) पृथिवी आदिकों में (वीरान्) उत्तम गुणों से युक्त पुरुषों को (अदधुः) धारण किया करें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - जो उत्तम विचार करनेवाले धार्मिक विद्वान् पुरुष अपने अनादि काल सिद्ध सामर्थ्य को बढ़ावें, सब लोगों के लिये सत्य और असत्य का उपदेश कर दुष्टता को दूर कर और श्रेष्ठता का धारण करें, वे ही शूरवीर होते हैं, यह जानना चाहिये ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

ये स्वं संपश्यमानाः प्रत्नस्य रेतसः पयो दुघाना अभ्यमदन्नेषां निःष्ठां घोषः सूर्यो रोदसी इव दुष्टान्व्यतपत्ते जातेऽस्मिञ्जगति गोषु वीरानदधुः ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (संपश्यमानाः) सम्यक् प्रेक्षमाणाः (अमदन्) आनन्दन्ति (अभि) आभिमुख्ये (स्वम्) स्वकीयम् (पयः) दुग्धम् (प्रत्नस्य) प्राक्तनस्य (रेतसः) वीर्यस्य (दुघानाः) प्रपूरयन्तः (वि) (रोदसी) द्यावापृथिव्यौ (अतपत्) तपति (घोषः) वाणी (एषाम्) विदुषाम् (जाते) (निःष्ठाम्) नितरां स्थितानाम् (अदधुः) दधीरन् (गोषु) पृथिव्यादिषु (वीरान्) प्राप्तशुभगुणान् ॥१०॥
भावार्थभाषाः - ये विचारशीला धार्मिका विद्वांसः स्वकीयं सनातनमात्मसामर्थ्यं वर्धयेयुः सर्वेभ्यः सत्याऽसत्ये उपदिश्य दुष्टतां निवार्य्य श्रेष्ठतां धारयेयुस्त एव शूरवीराः सन्तीति वेद्यम् ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे उत्तम विचार करणारे धार्मिक विद्वान पुरुष असतात त्यांनी अनादि आत्मसामर्थ्य वाढवावे. सर्व लोकांसाठी सत्य व असत्याचा उपदेश करून दुष्टता दूर करून श्रेष्ठता धारण करतात ते शूरवीर असतात, हे जाणले पाहिजे. ॥ १० ॥