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धि॒या च॑क्रे॒ वरे॑ण्यो भू॒तानां॒ गर्भ॒मा द॑धे। दक्ष॑स्य पि॒तरं॒ तना॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

dhiyā cakre vareṇyo bhūtānāṁ garbham ā dadhe | dakṣasya pitaraṁ tanā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

धि॒या। च॒क्रे॒। वरे॑ण्यः। भू॒ताना॑म्। गर्भ॑म्। आ। द॒धे॒। दक्ष॑स्य। पि॒तर॑म्। तना॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:27» मन्त्र:9 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:29» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:9


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वान् लोग क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (वरेण्यः) आदर करने योग्य अति श्रेष्ठ पुरुष (तना) विस्तारयुक्त (धिया) श्रेष्ठ बुद्धि वा शिक्षा से (दक्षस्य) चतुर विद्यार्थीपुरुष के (पितरम्) पिता के सदृश पालनकर्त्ता (भूतानाम्) प्राणियों के (गर्भम्) विद्या आदि उत्तम गुणों को स्थिति करने रूप गर्भ को (आ) (दधे) सब प्रकार धारण करे और विद्यासम्बन्धी वृद्धि को (चक्रे) करे तो उसकी अपने आत्मा के सदृश सेवा करो ॥९॥
भावार्थभाषाः - जैसे पति अपनी स्त्री में गर्भ को धारण करके श्रेष्ठ सन्तानों को उत्पन्न करता है, वैसे ही विद्वान् लोग मनुष्यों की बुद्धि में विद्यासम्बन्धी गर्भ की स्थिति करके उत्तम व्यवहारों को उत्पन्न करें ॥९॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वांसः किं कुर्युरित्याह।

अन्वय:

हे मनुष्या यो वरेण्यस्तना धिया दक्षस्य पितरं भूतानां गर्भमादधे विद्यावृद्धिं चक्रे तमात्मवत्सेवध्वम् ॥९॥

पदार्थान्वयभाषाः - (धिया) श्रेष्ठया प्रज्ञया शिक्षया वा (चक्रे) कुर्य्यात् (वरेण्यः) वरितुमर्होऽतिश्रेष्ठः (भूतानाम्) प्राणिनाम् (गर्भम्) विद्यादिसद्गुणस्थापनाख्यम् (आ) समन्तात् (दधे) दधेत (दक्षस्य) चतुरस्य विद्यार्थिनः (पितरम्) पितृवत्पालकम् (तना) विस्तृतया ॥९॥
भावार्थभाषाः - यथा पतिः पत्न्यां गर्भं धारयित्वोत्तमान्यपत्यान्युत्पादयति तथैव विद्वांसो मनुष्याणां बुद्धौ विद्यागर्भं स्थापयित्वोत्तमान् व्यवहारान् जनयेयुः ॥९॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जसा पती आपल्या स्त्रीत गर्भ धारण करून श्रेष्ठ संतानांना उत्पन्न करतो, तसेच विद्वान लोकांनी मनुष्याच्या बुद्धीमध्ये विद्यारूपी गर्भ निर्माण करून उत्तम व्यवहार उत्पन्न करावा. ॥ ९ ॥