अग्ने॒ इन्द्र॑श्च दा॒शुषो॑ दुरो॒णे सु॒ताव॑तो य॒ज्ञमि॒होप॑ यातम्। अम॑र्धन्ता सोम॒पेया॑य देवा॥
agna indraś ca dāśuṣo duroṇe sutāvato yajñam ihopa yātam | amardhantā somapeyāya devā ||
अग्ने॑। इन्द्रः॑। च॒। दा॒शुषः॑। दु॒रो॒णे। सु॒तऽव॑तः। य॒ज्ञम्। इ॒ह। उप॑। या॒त॒म्। अम॑र्धन्ता। सो॒म॒ऽपेया॑य। दे॒वा॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे अग्ने ! विद्वन्यथाऽमर्धन्ता देवा इन्द्रो वायुश्च सोमपेयाय सुतावतो दाशुषो दुरोणे यज्ञमिहोपयातं तथैव त्वमुपयाहि अध्यापकोपदेशकौ चोपयातम् ॥४॥