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अग्ने॒ इन्द्र॑श्च दा॒शुषो॑ दुरो॒णे सु॒ताव॑तो य॒ज्ञमि॒होप॑ यातम्। अम॑र्धन्ता सोम॒पेया॑य देवा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agna indraś ca dāśuṣo duroṇe sutāvato yajñam ihopa yātam | amardhantā somapeyāya devā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। इन्द्रः॑। च॒। दा॒शुषः॑। दु॒रो॒णे। सु॒तऽव॑तः। य॒ज्ञम्। इ॒ह। उप॑। या॒त॒म्। अम॑र्धन्ता। सो॒म॒ऽपेया॑य। दे॒वा॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:25» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के तुल्य विद्या से प्रकाशित विद्वान् पुरुष ! जैसे (अमर्धन्ता) सबको सुखाते हुए (देवा) श्रेष्ठ गुणों से युक्त पुरुष (इन्द्रः) अत्यन्त ऐश्वर्यकारक बिजुली संबन्धी अग्नि (च) और पवन तथा (सोमपेयाय) ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये (सुतावतः) ऐश्वर्य से युक्त (दाशुषः) विद्यासम्बन्धी सुख के दाता (दुरोणे) गृह में (यज्ञम्) विद्वान् सत्कार आदि स्वरूप व्यवहार को (इह) इस संसार में (उप) (यातम्) प्राप्त हों और वैसे आप भी प्राप्त होइये और अध्यापक तथा उपदेशक भी प्राप्त हों ॥४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जहाँ वायु और बिजुली के तुल्य वर्त्तमान अविद्या के विनाश और विद्या के प्रकाशकर्त्ता धर्म के उपदेशकर्त्ता अध्यापक और उपदेशक होवें, वहाँ संपूर्ण सुख बढ़े ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने ! विद्वन्यथाऽमर्धन्ता देवा इन्द्रो वायुश्च सोमपेयाय सुतावतो दाशुषो दुरोणे यज्ञमिहोपयातं तथैव त्वमुपयाहि अध्यापकोपदेशकौ चोपयातम् ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) (इन्द्रः) परमैश्वर्य्यकारको विद्युदग्निः (च) वायुः (दाशुषः) विद्यासुखस्य दातुः (दुरोणे) गृहे (सुतावतः) ऐश्वर्य्ययुक्तस्य (यज्ञम्) विद्वत्सत्कारादिमयं व्यवहारम् (इह) अस्मिन्संसारे (उप) (यातम्) प्राप्नुतम् (अमर्धन्ता) सर्वान् शोषयन्तौ (सोमपेयाय) ऐश्वर्यप्राप्तये (देवा) दिव्यगुणयुक्तौ ॥४॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यत्र वायुविद्युद्वद्वर्त्तमानावविद्याविनाशकौ विद्याप्रकाशकौ धर्मोपदेष्टारावध्यापकोपदेशकौ स्यातां तत्र सर्वाणि सुखानि वर्धेरन् ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जेथे वायू व विद्युतप्रमाणे अविद्येचा नाश व विद्येचा प्रकाशक, धर्माचा उपदेश करणारा अध्यापक व उपदेशक असेल तेथे संपूर्ण सुख वाढेल. ॥ ४ ॥