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अग्ने॑ दि॒वः सू॒नुर॑सि॒ प्रचे॑ता॒स्तना॑ पृथि॒व्या उ॒त वि॒श्ववे॑दाः। ऋध॑ग्दे॒वाँ इ॒ह य॑जा चिकित्वः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

agne divaḥ sūnur asi pracetās tanā pṛthivyā uta viśvavedāḥ | ṛdhag devām̐ iha yajā cikitvaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्ने॑। दि॒वः। सू॒नुः। अ॒सि॒। प्रऽचे॑ताः। तना॑। पृ॒थि॒व्याः। उ॒त। वि॒श्वऽवे॑दाः। ऋध॑क्। दे॒वान्। इ॒ह। य॒ज॒। चि॒कि॒त्वः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:25» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:25» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब पाँच ऋचावाले पच्चीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। इसके प्रथम मन्त्र से सूर्यरूप अग्नि के दृष्टान्त से विद्वानों का कर्त्तव्य कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (चिकित्वः) विज्ञानवान् (अग्ने) विद्वन् ! पुरुष जैसे (दिवः) बिजुली से (सूनुः) सूर्य्य के समान तेजस्वी (प्रचेताः) उत्तम विज्ञानयुक्त वा विज्ञानदाता (पृथिव्याः) अन्तरिक्ष के (तना) विस्तारक (उत) और भी (विश्ववेदाः) धनदाता (असि) हो वह आप (इह) इस संसार में (देवान्) विद्वान् वा उत्तम गुणों को (ऋधक्) स्वीकार करने में (यज) संयुक्त कीजिये ॥१॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे सूर्य्य संपूर्ण स्वरूपवाले द्रव्यों का प्रकाशक है, वैसे विद्वान् और विद्वानों से प्रेमकारी पुरुष इस संसार में सर्वजनों के आत्माओं के प्रकाशक होते हैं ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ सूर्याग्निदृष्टान्तेन विद्वत्कृत्यमाह।

अन्वय:

हे चिकित्वोऽग्ने ! यथा दिवः सूनुः सूर्य्य इव प्रचेताः पृथिव्यास्तना उत विश्ववेदा असि स त्वमिह देवानृधग्यज ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अग्ने) विद्वन् (दिवः) विद्युतः (सूनुः) सूर्य्यः (असि) (प्रचेताः) प्रकृष्टज्ञानयुक्तो विज्ञापको वा (तना) विस्तारकः (पृथिव्याः) अन्तरिक्षस्य (उत) अपि (विश्ववेदाः) यो विश्वं धनं विन्दति सः (ऋधक्) स्वीकारे (देवान्) विदुषो दिव्यगुणान् वा (इह) अस्मिन्संसारे (यज) सङ्गमय। अत्र द्व्यचोऽतस्तिङ इति दीर्घः। (चिकित्वः) विज्ञानवन् ॥१॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथा सूर्य्यस्सर्वेषां मूर्त्तिमद्द्रव्याणां प्रकाशकोऽस्ति तथा विद्वांसो विद्वत्प्रियाश्चेह सर्वेषामात्मनां प्रकाशका भवन्ति ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात अग्नी व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती जाणावी.

भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसा सूर्य सर्व स्वरूप द्रव्याचा प्रकाशक आहे तसे विद्वान व विद्वानांना प्रेम करणारे पुरुष या जगात सर्व लोकांच्या आत्म्याचे प्रकाशक आहेत. ॥ १ ॥