अग्ने॒ सह॑स्व॒ पृत॑ना अ॒भिमा॑ती॒रपा॑स्य। दु॒ष्टर॒स्तर॒न्नरा॑ती॒र्वर्चो॑ धा य॒ज्ञवा॑हसे॥
agne sahasva pṛtanā abhimātīr apāsya | duṣṭaras tarann arātīr varco dhā yajñavāhase ||
अग्ने॑। सह॑स्व। पृत॑नाः। अ॒भिऽमा॑तीः। अप॑। अ॒स्य॒। दु॒स्तरः॑। तर॑न्। अरा॑तीः। वर्चः॑। धाः॒। य॒ज्ञऽवा॑हसे॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब पाँच ऋचावाले चौबीसवें सूक्त का प्रारम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र से राजधर्मविषय का उपदेश करते हैं।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ राजधर्मविषयमाह।
हे अग्ने ! त्वं पृतनाः सहस्व अभिमातीरपास्य। दुष्टरस्त्वमरातीस्तरन् यज्ञवाहसे वर्चो धाः ॥१॥
माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)या सूक्तात अग्नी, राजा व विद्वानांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची मागच्या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर संगती जाणावी.