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भूरी॑णि॒ हि त्वे द॑धि॒रे अनी॒काऽग्ने॑ दे॒वस्य॒ यज्य॑वो॒ जना॑सः। स आ व॑ह दे॒वता॑तिं यविष्ठ॒ शर्धो॒ यद॒द्य दि॒व्यं यजा॑सि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

bhūrīṇi hi tve dadhire anīkāgne devasya yajyavo janāsaḥ | sa ā vaha devatātiṁ yaviṣṭha śardho yad adya divyaṁ yajāsi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

भूरी॑णि। हि। त्वे इति॑। द॒धि॒रे। अनी॑का। अग्ने॑। दे॒वस्य॑। यज्य॑वः। जना॑सः। सः। आ। व॒ह॒। दे॒वता॑तिम्। य॒वि॒ष्ठ॒। शर्धः॑। यत्। अ॒द्य। दि॒व्यम्। यजा॑सि॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:19» मन्त्र:4 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:19» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:2» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (यविष्ठ) अतिशय युवावस्थासम्पन्न (अग्ने) बिजुली के सदृश सम्पूर्ण विद्याओं में व्यापी पुरुष ! जिस (देवस्य) उत्तम गुण कर्म स्वभाववान् जन के सङ्ग से (यज्यवः) आदर करने योग्य (जनासः) विद्या आदि गुणों से प्रकट जन (हि) जिससे (त्वे) आपमें (भूरीणि) बहुत (अनीका) सेनाओं को (दधिरे) धारण करें (यत्) (अद्य) जो इस समय (दिव्यम्) पवित्र (शर्धः) बल को (यजासि) धारण करो और (सः) वह आप (देवतातिम्) उत्तम स्वभाव को (आ) (वह) सबप्रकार प्राप्त होइये ॥४॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य विद्वानों के सङ्ग से बहुत सी उत्तम प्रकार शिक्षित सेनाओं को ग्रहण करें, वे अतिबल को प्राप्त होके उत्तम गुणों का आकर्षण करें ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

ये यविष्ठाग्ने ! यस्य देवस्य सङ्गेन यज्यवो जनासो हि त्वे भूरीण्यनीका दधिरे यदद्य दिव्यं शर्धो यजासि स त्वं देवतातिमावह ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (भूरीणि) बहूनि (हि) यतः (त्वे) त्वयि (दधिरे) दधीरन् (अनीका) अनीकानि सैन्यानि (अग्ने) विद्युदिव सकलविद्यासु व्यापिन् (देवस्य) दिव्यगुणकर्मस्वभावस्य (यज्यवः) सत्कर्तव्याः (जनासः) विद्यादिगुणैः प्रादुर्भूताः (सः) (आ) (वह) समन्तात्प्राप्नुहि (देवतातिम्) दिव्यस्वभावम् (यविष्ठ) अतिशयेन युवन् (शर्धः) बलम् (यत्) (अद्य) इदानीम् (दिव्यम्) पवित्रम् (यजासि) यजेः ॥४॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या विद्वत्सङ्गेन बह्वीः सुशिक्षिताः सेना गृह्णीयुस्ते महद्बलं प्राप्य दिव्यान्गुणानाकर्षेयुः ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - भावार्थ -जी माणसे विद्वानांच्या संगतीने पुष्कळ उत्तम प्रकारच्या प्रशिक्षित सेना बाळगतात, त्यांना अत्यंत बल प्राप्त होते व ती उत्तम गुणांचे आकर्षण करू शकतात. ॥ ४ ॥