मा नो॑ अ॒ग्नेऽम॑तये॒ मावीर॑तायै रीरधः। मागोता॑यै सहसस्पुत्र॒ मा नि॒देऽप॒ द्वेषां॒स्या कृ॑धि॥
mā no agne mataye māvīratāyai rīradhaḥ | māgotāyai sahasas putra mā nide pa dveṣāṁsy ā kṛdhi ||
मा। नः॒। अ॒ग्ने॒। अम॑तये। मा। अ॒वीर॑तायै। री॒र॒धः॒। मा। अ॒गोता॑यै। स॒ह॒सः॒। पु॒त्र॒। मा। नि॒दे। अप॑। द्वेषां॑सि। आ। कृ॒धि॒॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे सहसस्पुत्राऽग्ने ! त्वं नोऽमतये मा रीरधोऽवीरतायै मा रीरधोऽगोतायै मा रीरधो निदे द्वेषांसि माऽपाकृधि ॥५॥