नू नो॑ रास्व स॒हस्र॑वत्तो॒कव॑त्पुष्टि॒मद्वसु॑। द्यु॒मद॑ग्ने सु॒वीर्यं॒ वर्षि॑ष्ठ॒मनु॑पक्षितम्॥
nū no rāsva sahasravat tokavat puṣṭimad vasu | dyumad agne suvīryaṁ varṣiṣṭham anupakṣitam ||
नु। नः॒। रा॒स्व॒। स॒हस्र॑ऽवत्। तो॒कऽव॑त्। पु॒ष्टि॒ऽमत्। वसु॑। द्यु॒मत्। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽवीर्य॑म्। वर्षि॑ष्ठम्। अनु॑पऽक्षितम्॥
स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।
स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह।
हे अग्ने जगदीश्वर विद्वन् वा ! त्वं नः सहस्रवत्तोकवत्पुष्टिमत्सुवीर्य्यं द्युमद्वर्षिष्ठमनुपक्षितं च वसु नु रास्व ॥७॥