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इन्द्रा॑ग्नी॒ अप॑स॒स्पर्युप॒ प्र य॑न्ति धी॒तयः॑। ऋ॒तस्य॑ प॒थ्या॒३॒॑ अनु॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī apasas pary upa pra yanti dhītayaḥ | ṛtasya pathyā anu ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। अप॑सः। परि॑। उप॑। प्र। य॒न्ति॒। धी॒तयः॑। ऋ॒तस्य॑। प॒थ्याः॑। अनु॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:12» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:12» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली (ऋतस्य) सत्य (अपसः) कर्म के (परि) सब ओर से (पथ्याः) मार्ग में सुखकारक सड़कों के (अनु) अनुकूल जाते हुए इन वायु बिजुलियों की गति (धीतयः) अङ्गुलियों के समान (उप) समीप में (प्र, यन्ति) प्राप्त होती हैं, वैसे ही आप लोग भी श्रेष्ठ मार्ग में नियमपूर्वक चलिये ॥७॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जैसे ईश्वर की सृष्टि में सूर्य्य आदि पदार्थ नियम के साथ अपने-अपने मार्गपर चलते हैं, वैसे ही मनुष्य लोग भी धर्मयुक्त मार्ग में चलें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह।

अन्वय:

हे मनुष्या यथेन्द्राग्नी ऋतस्यापसः परि पथ्या अनु गच्छतोऽनयोर्गतयो धीतय इवोप प्रयन्ति तथा यूयं सन्मार्गं नियमेन गच्छत ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (अपसः) कर्मणः (परि) सर्वतः (उप) समीपे (प्र) (यन्ति) गच्छन्ति (धीतयः) अङ्गुलय इव गतयः। धीतय इत्यङ्गुलिना०। निघं० २। ५। (ऋतस्य) सत्यस्य (पथ्याः) पथि साध्वीर्वीथीः (अनु) ॥७॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। यथेश्वरसृष्टौ सूर्य्यादिपदार्था नियमेन स्वं स्वं मार्गं गच्छन्ति तथैव मनुष्या धर्म्येण मार्गेण गच्छन्तु ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. जसे ईश्वराच्या सृष्टीत सूर्य इत्यादी पदार्थ नियमाने आपापल्या मार्गाने चालतात, तसेच माणसांनीही धर्मयुक्त मार्गाने चालावे. ॥ ७ ॥