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इन्द्रा॑ग्नी नव॒तिं पुरो॑ दा॒सप॑त्नीरधूनुतम्। सा॒कमेके॑न॒ कर्म॑णा॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī navatim puro dāsapatnīr adhūnutam | sākam ekena karmaṇā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। न॒व॒तिम्। पुरः॑। दा॒सऽप॑त्नीः। अ॒धू॒नु॒त॒म्। सा॒कम्। एके॑न। कर्म॑णा॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:12» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:12» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सभापति सेनापतियो ! जैसे (इन्द्राग्नी) वायु और अग्नि को (साकम्) एक साथ (एकेन) (कर्मणा) एक कर्म से (नवतिम्) नब्बे संख्यायुक्त (पुरः) पालन करनेवाली (दासपत्नीः) शत्रुओं को युद्ध में दूर फेंकनेवाले पुरुषों की स्त्रियों के तुल्य वर्त्तमान सूर्य्य की किरणें (अधूनुतम्) कंपाती हैं वैसे आप दोनों सेना आदिकों से शत्रुओं को कम्पावें ॥६॥
भावार्थभाषाः - सभाध्यक्षादि मनुष्यों को चाहिये कि परस्पर एक सम्मति से दुष्ट पुरुषों को उत्तम स्थानों से दूर कर और श्रेष्ठ पुरुषों का सत्कार करके धर्म्मपूर्वक व्यवहार से राज्यप्रबन्ध करें ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे सभासेनेशौ ! यथेन्द्राग्नी साकमेकेन कर्मणा नवतिं पुरो दासपत्नीरधूनुतं तथैव युवां सेनादिभिः शत्रून् कम्पयतम् ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) वाय्वग्नी (नवतिम्) एतत्सङ्ख्याताः (पुरः) पालिकाः (दासपत्नीः) ये दस्यन्त्युपक्षिण्वन्ति शत्रून् ते दासास्तेषां पत्नीरिव वर्त्तमानाः किरणाः (अधूनुतम्) (साकम्) सह (एकेन) (कर्मणा) क्रियया ॥६॥
भावार्थभाषाः - सभाध्यक्षादिमनुष्यैरैकमत्येन दुष्टान्निवार्य्य श्रेष्ठान् सत्कृत्य धर्म्येणाचरणेन राज्यशासनं कर्त्तव्यम् ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सभाध्यक्ष इत्यादींनी परस्पर एका संमतीने दुष्ट पुरुषांचे निवारण करून श्रेष्ठ पुरुषांचा सत्कार करून धर्मपूर्वक व्यवहाराने राज्यप्रबंध करावा. ॥ ६ ॥