वांछित मन्त्र चुनें

इन्द्रा॑ग्नी॒ आ ग॑तं सु॒तं गी॒र्भिर्नभो॒ वरे॑ण्यम्। अ॒स्य पा॑तं धि॒येषि॒ता॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrāgnī ā gataṁ sutaṁ gīrbhir nabho vareṇyam | asya pātaṁ dhiyeṣitā ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। आ। ग॑तम्। सु॒तम्। गीः॒ऽभिः। नभः॑। वरे॑ण्यम्। अ॒स्य। पा॒त॒म्। धि॒या। इ॒षि॒ता॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:12» मन्त्र:1 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:11» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:1


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब नव ऋचावाले बारहवें सूक्त का आरम्भ है। उसके प्रथम मन्त्र में अध्यापक और उपदेशक का विषय कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्या पढ़ाने और उपदेश देनेवाले पुरुषो ! आप दोनों (इन्द्राग्नी) वायु और बिजुली के सदृश (अस्य) इस संसार में वर्त्तमान होकर (इषिता) बोध देते हुए (गीर्भिः) उत्तम शिक्षाओं से पूरित वाणियों के सहित (धिया) श्रेष्ठ बुद्धि से (नभः) अन्तरिक्ष नामक अवकाश की ओर (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (सुतम्) विद्या से उपार्जित धन से युक्त पुत्र वा शिष्य की (पातम्) रक्षा कीजिये और (आ, गतम्) विद्या के प्रचार के लिये आइये ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापक और उपदेशक पुरुषों ! जैसे वायु और सूर्य्य सम्पूर्ण जगत् के रक्षाकारक हैं, वैसे ही विद्या और उत्तम शिक्षा से सम्पूर्ण जगत् के रक्षक हूजिये ॥१॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाध्यापकोपदेशकविषयमाह।

अन्वय:

हे अध्यापकोपदेशकौ ! युवामिन्द्राग्नी इवास्य मध्ये वर्त्तमानाविषिता गीर्भिर्धिया नभो वरेण्यं सुतं पातम्। विद्याप्रचारायाऽऽगतम् ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्राग्नी) वायुविद्युतौ (आ) (गतम्) आगच्छतम् (सुतम्) विद्याजन्यमैश्वर्य्यवन्तं पुत्रं विद्यार्थिनं वा (गीर्भिः) सुशिक्षिताभिर्वाग्भिः सह (नभः) अन्तरिक्षमवकाशम्। नभ इति साधारणना०। निघं० १। ४। (वरेण्यम्) वरितुं स्वीकर्त्तुमर्हम् (अस्य) संसारस्य मध्ये (पातम्) रक्षतम् (धिया) प्रज्ञया (इषिता) प्रज्ञापकौ सन्तौ ॥१॥
भावार्थभाषाः - हे अध्यापकोपदेशकौ यथा वायुसूर्यौ सर्वस्य जगतो रक्षकौ स्तस्तथैव विद्यासुशिक्षाभ्यां सर्वस्य रक्षकौ भवतम् ॥१॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात इन्द्र, अग्नी, अध्यापक, उपदेशक व सेना आणि सेनेचे स्वामी यांच्या गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाची पूर्व सूक्तार्थाबरोबर संगती आहे हे जाणले पाहिजे.

भावार्थभाषाः - हे अध्यापक व उपदेशक पुरुषांनो! जसे वायू व सूर्य संपूर्ण जगाचे रक्षक आहेत, तसेच विद्या व उत्तम शिक्षणाने संपूर्ण जगाचे रक्षक व्हा! ॥ १ ॥