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त्वां य॒ज्ञेष्वृ॒त्विज॒मग्ने॒ होता॑रमीळते। गो॒पा ऋ॒तस्य॑ दीदिहि॒ स्वे दमे॑॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvāṁ yajñeṣv ṛtvijam agne hotāram īḻate | gopā ṛtasya dīdihi sve dame ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वाम्। य॒ज्ञेषु॑। ऋ॒त्विज॑म्। अग्ने॑। होता॑रम्। ई॒ळ॒ते॒। गो॒पाः। ऋ॒तस्य॑। दी॒दि॒हि॒। स्वे। दमे॑॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:10» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:1» वर्ग:7» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:1» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अविद्यादि दोषों के नाशक जगदीश्वर ! जो (ऋतस्य) सत्य के (गोपाः) रक्षक विद्वान् लोग (यज्ञेषु) अच्छे व्यवहारों वा यज्ञों में (ऋत्विजम्) ऋत्विज् के तुल्य सुखसाधक (होतारम्) सबके धारण करनेहारे (त्वाम्) आपकी (ईडते) स्तुति करते हैं सो आप (स्वे) अपने (दमे) नियमरूप व्यवहार में उन विद्वानों को (दीदिहि) विज्ञान दान दीजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग सत्य भाषणादि धर्म का अनुष्ठान कर और असत्य भाषणादि रूप अधर्म को छोड़ के आपका भजन करते हैं, वे आपको प्राप्त होके सदा आनन्दित हुए इस संसार में वसते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे अग्ने जगदीश्वर ! य ऋतस्य गोपा यज्ञेष्वृत्विजं होतारं यं त्वामीळते स त्वं स्वे दमे तान् दीदिहि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वाम्) (यज्ञेषु) पूजनीयेषु व्यवहारेषु वा (ऋत्विजम्) ऋत्विग्वत्सुखसाधकम् (अग्ने) अविद्यादोषप्रदाहकपरात्मन् (होतारम्) सर्वस्य धर्त्तारम् (ईळते) स्तुवन्ति (गोपाः) रक्षकाः) (ऋतस्य) सत्यस्य (दीदिहि) प्रकाशय (स्वे) स्वकीये (दमे) दमनशीले व्यवहारे ॥२॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे परमेश्वर ये सत्यभाषणादिलक्षणं धर्ममनुष्ठायाऽसत्यभाषणादिलक्षणमधर्मं विहाय त्वां भजन्ति ते भवन्तं प्राप्य सदाऽऽनन्दिता इह वसन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे परमेश्वरा! जे लोक सत्यभाषण इत्यादी धर्माचे अनुष्ठान करतात व असत्यभाषणरूपी अधर्माला सोडून तुझे भजन करतात ते तुला प्राप्त करून सदैव आनंदित राहून या जगात निवास करतात. ॥ २ ॥